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केय ॥ सु० ॥ देता दैव उलंजमा होलाल, श्राव्या लोक वलेय ॥ सु० ॥ च० ॥ २२ ॥ खबर कही जे सेवकें होलाल, संतूवो नरपाल || सु० || बीजे खंमे यामी होलाल, कांतें कही ए ढाल ॥ सु०॥ च० ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ हवे नरपति हरख्यो दीये, चित्तमां चिंते एम ॥ हणतां पुत्री पुष्टनें, यो वंशने खेम ॥ १ ॥ यमंत्र्या नृप नंद जे, तास जणावुं वात ॥ मुज तनुजा व्याधें मूई, मति वो कि घात ॥ २ ॥ वली पूढं कनका प्रत्यें, मुज उपकारक एह ॥ श्म विचारी सचिवशुं, नृप पोहोतो तस गेह ॥ ३ ॥ बार जमयां देखी ति हां, पामे चित्र सरूप ॥ कुंची विवर कमामनों, तेहमां निरखे जूप ॥ ४ ॥ गर्न जवन दीपक करी, लेई हार तेनार ॥ दीवी नूपें विवरथी, करति इंम मनोहार ॥५॥ ॥ ढाल नवमी ॥ केशर वरणो हो काढ करूंबो मारा लाल ॥ ए देशी ॥ अथवा ॥ नेमि पर्यपेदो प्रीति संजालो महारा लाल ॥ एदेशी ॥ ॥ हार बबिला हो करुणा धरजो ॥ मारा लाल ॥ संकट हरजो हो मंगल करजो ॥ मा० ॥ डुर्लन लाधो हो सुरमणि बीजो || मा० ॥ दीठो तादारो हो सबल
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