SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२७१) चित्तमांहिं ।। स०॥ कु०॥ २०॥ सुत आगे जनका दिके, नांखि निज निज वात ॥ स०॥मलयायें कुम रें वली, नांख्या तिम अवदात ॥ स० ॥ कु० ॥१॥ चोथे खमें वीशमी, लांखी अनुपम ढाल ॥ स० ॥ कांतिविजय कहे सांजलो, आगल वात रसाल ॥ ॥ स० ॥ कु० ॥१२॥ ॥ दोहा ॥ ॥वीरधवल पुत्री तणां, निसुणी पुःख विरतंत ॥ विषम कर्मगति नावतो, तनुजाने पत्नणंत ॥१॥ है है नृपकुल ऊपनी, पोषी लाम विलास ॥ रखनी दि शिदिशि रंक ज्यौं, पमी कर्ममें पास ॥ ॥ सह्यां विविध पुःख आकरां, कोमल अंगें एम॥ व्यसन म होदधि उस्तरें, तरी तरी परें केम ॥३॥ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ नगर रतनपुर जाणीयें॥ ए देशी॥अथवा, उही नावना मन धरो ॥ ए देशी॥ ॥सूरपतिमहीपति बोले ए, पमिया मामा मोलें ए, खोले ए, निज मन फुःखनी गांठमी ए॥१॥हा पुत्री हा पापीयो, कुमति दशायें व्यापीयो, थापीयो, कूमो कलंक ताहरे शिरें ए॥२॥ काज कां में अण जा एयु, जल पीधुं ते विण बाण्यु, अतिताएयु, तुज सायें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy