SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७५) दीस ॥ सुख जोगवतां मलया एहवे, धरे गर्न सुजगी श॥ सा ॥ २७ ॥ ऊपजतां मोहोला पीउ हेजें, पूरे नव नव नातें ॥ प्रसव समय बासन्न हू तव, दी पेराणी गातें॥सा॥१५॥त्रीजे खंमें चावी दशमी, ढाल महारस पूरी ॥ जांखी कांतिविजय बुध नेहें, नि रुपम राग सनूरी ॥ सा ॥ २०॥ इति ॥ ॥दोहा॥ - इंण अवसर महबल प्रत्ये, दीये तात आदेश ॥ वत्स विकट नट साजसुं, करो चढाई वेस॥१॥नामें क्रुर सज्यो गढ़ें, पसीनायक क्रूर ॥ करे उपडव देश मां, ते निळटो पूर ॥२॥सजा समदें दक्षते, तात वचन परमाण ॥ मलयाने पूबण जणी, गयो जुवन गुणखाण ॥ ३॥ चिंताकुल प्रमदा कहे, हुं श्रावीश पीयु साथ ॥र रहीने किम चढुं, विषमविरहने हाथ ॥४॥ कुमर कहे अवसर नहिं, रहो करी दृढ चि त ॥ सानचित्त गुटिका कन्हे, राखो गुण संजुत्त ॥५॥ जाणे तुं गुण एहना, करजे खरां यतन्न॥ ते श्रापी पनणे वली, महबल विरह विखिन्न ॥६॥पदमिणी तो पांखे हिये, आवे विरह नरेय ॥ गल्या दिवसमा ते जणी, आदीश कार्य करेय ॥ ७॥ तात वचन जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy