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________________ ( OR ) णें जरे ॥ ३२ ॥ क्षण बेशे मन शून्य रे, दण ऊठे धसी, क्षण वली करतो विलंबनाए ॥ बांकी नर म र्याद रे, धीरज हारियो, ऐऐ मोह विटंबनाए ॥ ३३ ॥ मलिया सचिव ने रे, दुःखजर जंगुरा, गदगद व चने वीनवे ए ॥ चालो हो महाराज रे, लायक सा हेबा, तुरत पणे जश्यें हवेए ॥ ३४ ॥ ढील तणो न ही काम रे, देवी देखीजे, कवण दिसायें याक्रमीए ॥ जो विष व्यापि होय रे, तोपण जीवको, रहे ते ना जीमां संक्रमीए ॥ ३५ ॥ करतां कोई उपाय रे, जो जीवे कदी, तो तुज जाग्य प्रशंसी येंए ॥ वचन सुणी नूनाथ रे, चाले वेगशुं, वीट्यो परियण दासीयेंए || ॥ ३६ ॥ आव्या राणी गेह रे, दीवी कावसी, दव दाधी जिम वेलमीए ॥ शब्द रहित निश्चेष्ट रे, नील वदन बबी, दंत जीमी सेजें पकीए ॥ ३७ ॥ मूर्छाणो ऋतिकंत रे, प्रांत नयण थयां, नेह दावानल वली जग्योए | सींच्यो सीतल नीर रे, ऊक्यो निज प्रिया, देखी वली मूर्छा लग्योए ॥ ३८ ॥ फरी ऊठे फरी तेम रे, मूर्खे नरपति, फरी ऊवे एम दुःख लम् ॥ मंत्री मलीने यंग रे, देखी राणीनुं, मांहो मांदे घम कए ॥ ३ ॥ अंग नहीं बे कोई रे, ब्रण घाता दिक, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003682
Book TitleMahabal Malayasundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1907
Total Pages324
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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