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( १६५ )
तां नारी सांग ॥ नं० || महबल जांखे तातने रे, शेष कथा एकांग ॥ नं० ॥ ११ ॥ जातां नारी पाबलें रे, गु टिका तिलक रचेय ॥ नं० ॥ नारी नर रूपें करी रे, मुज वस्त्रादिक देय ॥ नं० ॥ १२ ॥ ते फणिधर हुं क र ग्रह्यो रे, धीज समय ईणे बाल || नं० ॥ जाल ति लक चाटयुं चढी रे, में एहनुं ततकाल ॥ नं० ॥ १३ ॥ नर फिटी नारी हुइ रे, ए परमारथ वात | नं० ॥ नू प प्रमुख सहु रीजीया रे, सुणि अद्भुत अवदात ॥ ॥ नं० ॥ १४ ॥ नूप कहे में यचयुं रे, अणघटतुं प्र तिकूल ॥ नं० लोक कहे न मिटे लिख्युं रे, जे सर जित विधि मूल | नं० ॥ १५ ॥ राणी मलयानें कहे रे, बेसारी उत्संग ॥ नं० ॥ कां न प्रकाश्यो आतमा रे, वत्से तें दुःख संग ॥ नं ॥ १६ ॥ अथवा तें जा एयुं कस्युं रे, वात न खाती पाम ॥ नं० ॥ विष अवस र जे जांखियें रे, न चढे तेह सिराम ॥ नं० ॥ १७ ॥ दुःखमां मौन धरी रही रे, नांखि न एका टोक ॥ नं० ॥ ए विरतंत कही जतो रे, मानत नहीं को लोक || ॥ नं० ॥ १८ ॥ रुरुं दैवें करयुं हशे रे, पाम्यां दुःखनो पार ॥ नं० यम गुनहो खमजो हवे रे, सतियां कु ल शणगार ॥ जं० ॥ १५ ॥ म कहेती नृपनी प्रिया
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