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॥ ३ ॥ सवास्यो केकाण रथ, पस्यो जाब गुलिम्म ॥ सिद्धराय जवनांगणें, जर पोहोतो जालिम्म ॥ ४ ॥ द्वारपाल नृप वीनवी, दीधो जवन प्रवेश ॥ करी स लाम सिद्धरायनें, जांखे इम संदेश ॥ ५ ॥ ॥ ढाल ढारमी ॥ उदया ते पुररो मांवो रे, गढ अरबुदरी जान महाराजा ॥ ए देशी ॥ ॥ पुहवी गणनो राजी रे, शूरपालण शूरपाल | महाराजा ॥ दम दांतोने फोज लेइनें रुमेज। श्रावे ॥ चं द्रावती नगरी धणी रे, वीरधवल बोगाल महाराजा ॥ द० ॥ १ ॥ ए बेदु एकमतुं यया रे, रूठो तोपर या ज म० ॥ ५० ॥ खेलि रण रस खांतसुं रे, लेशे ताहारुं राज म० ॥ द० || २ || सारथपतिनें रो कियो रे, नामें जे बलसार म० ॥ ५० ॥ ते साथै बे भूपति रे, राखे स्नेह अपार म० ॥ ५० ॥ ३ ॥ दा ता जग व्यवहारीयो रे, सहुनें बांधव तुल्य ॥ म० ॥ ॥ ० ॥ शकसी करता जली रे, मागे नहीं कांइ मूल्य स० ॥ द० ॥ ४ ॥ पुत्रपणे बांधव परें रे, जाणे एहनें भूप म० ॥ द० ॥ तो ते किम सदेशे प ड्यो रे, देखी दुःखने कूप म० ॥ ५० ॥ ५ ॥ ए जाते यावते रे, कीधो श्रमशुं नेह म० ॥ द० ॥ तु
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