Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ चिन्तामणिः
सकलशाखार्थाधिकरणाच्च । न हि मोक्षमार्गविशेषप्रतिपादकं मूत्रमस्मदादिप्रत्यक्षेण वाध्यते तस्य तदविषयत्वात्, यद्धि यदविषयं न तत्तद्वचसो बाधकं यथा रूपाविषयं रसनज्ञानं रूपवचसः, श्रेयोमार्गविशेषाविषयं चास्मदादिप्रत्यक्षमिति ।
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कोई कहता है कि इस प्रकरणपात तच्चार्थसूत्र ग्रंथ युक्तिसहित सत्य अर्थको प्रतिपादन करना रूप सूत्रका लक्षण घटता नहीं है, यों सूत्रपना असिद्ध हुआ । आचार्य कहते हैं कि यह उसका कहना तो ठीक नहीं है, जब कि इस सूत्रके वाच्य प्रमेयों में बाधकप्रमाणों के न होनेका भले प्रकार निश्चय है उस कारण इस अंथको वैसा सूत्रपना प्रमाणसिद्ध ही हुआ । सूत्रपने में दूसरा हेतु यह है के यह तत्त्वार्थसून संपूर्ण मात्र प्रतिवाद अर्थीका मूल आधार है । अथवा तत्त्वार्थसूत्रका पहिला " सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः " यह सूत्र मविष्यके दश अध्याय रूप पूर्ण ग्रंथका मूल आधार है, यानी पहिले सूत्रकी मितिपर ही दश अध्याय रचे गये हैं ।
अब इस सूत्र का अवाधितपना सिद्ध करते हैं कि अनेक मतावलम्बियों के अकेले ज्ञान आदिको मोक्षका मार्ग बतानेवाले अयुक्तिकवाक्योंसे असंतुष्ट हुए अनेक शिष्योंके मोक्षमार्गविषयक प्रश्नोंके उत्तरमै उमास्वामी महाराजके द्वारा सयुक्तिक सत्य कहा गया मोक्षमार्गका विशेषरूपसे प्रतिपादन करनेवाला यह सूत्र हम लोगोंके प्रत्यक्षसे तो बाधित होता नहीं है क्योंकि इस सूत्रका प्रतिपाध अर्थ उस मतिज्ञानरूप हमारे प्रत्यक्षका विषय ही नहीं है । यह व्याप्ति बनी हुई है कि जो ज्ञान जिस प्रमेयको विषय ही नहीं करता वह ज्ञान उस प्रमेयके प्रतिपादन करनेवाले वचनका बाधक नहीं होता है, जैसे कि रूपको न जानता हुआ रसनेन्द्रिय जन्य मतिज्ञान काले, नीले, रूपको कहनेवाले वचनका बाधक नहीं होता है । इसी प्रकार विशेष मोक्षमार्गको नहीं विषय करनेवाला हम लोगोंका प्रत्यक्ष भी उस सूत्रके याच्यार्थका बाधक नहीं हो सकता है ।
एतेनानुमानं तद्भाधकमिति प्रत्युक्तं तस्याननुमानविषयत्वात् श्रेयोमार्गसामान्यं हि तद्विषयो न पुनस्तद्विशेषः प्रवचन विशेषसमधिगम्यः । प्रवचनैकदेशस्तद्बाधक इति चेन्न वस्यातिसंक्षेपविस्ताराभ्यां प्रवृत्तस्याप्येतदर्थानतिक्रमस्तद्वाधकत्वायोगात् पूर्वापरप्रवचनैक देशयोरन्योन्यमनुग्राहकत्व सिद्धेश्व |
इस पूर्वोक्त कथनसे अनुमानको भी मोक्षमार्ग के प्रतिपादक सूत्रके बाधकपनेका खण्डन कर दिया गया है क्योंकि उपलम्भ और अनुपलम्भरूप मतिज्ञानसे उत्पन्न हुये व्याप्तिज्ञानके बलपर वैदा हुआ अनुमान विचारा उस अतीन्द्रिय मोक्षमार्गको विषय नहीं कर सकता है । यद्यपि अनेक हेतु ऐसे भी हैं जिनसे कि अतीन्द्रिय साध्य भी जान लिये जाते हैं, जैसे कि श्वास आदिके चलने से आत्माका ज्ञान, या लोक, अलोकके विभागसे धर्म, अधर्म द्रव्यका ज्ञान हो जाता है, तो भी उक्त