Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्यचिन्तामणिः
२५५
द्रव्यतोऽनादिपर्यन्तः सत्वात क्षित्यादितत्त्ववत् । स स्यान्न व्यभिचारोऽस्य हेतो शिन्यसम्भवात् ॥ १४६ ॥ कुम्भादयो हि पर्यन्ता अपि नैकान्तनश्वराः । शाश्वतद्रव्यतादात्म्याल्कथञ्चिदिति नो मतम् ॥ १४७॥
वह आस्मा (पक्ष ) द्रव्यरूपकरके अनादि कालसे अनन्त कालतक ठहरनेवाला है ( साध्य) क्योंकि वह सत्यपदार्थ है ( हेतु ) जैसे कि चाची कोंने पृथ्वी आदि तत्वोंको अनादि अनन्त माना है । ( अभयदृष्टान्त ) एकान्तरसे नाश होनेवाले पदार्थमें सत्त हेतुका विद्यमान रहना सम्भव नहीं है । अतः इस हेतुका कोई व्यभिचार दोष नहीं है अर्थात् एकांतसे सर्वथा नाश होनेवाला कोई पदार्थ संसारमै है ही नहीं, तब वहां सत्य हेतु कैसे रहेगा !, जो घट, पट, पुस्तक, गृह आदि पदार्थ नाशको प्राप्त हो रहे देखे जाते हैं वे भी एकांतरूपोंसे ना नहीं हो रहे हैं क्योंकि सर्वथा स्थित रहनेवाले युद्गलद्रन्यसे उनका फयञ्चित् तादात्म्यसम्बन्ध हो रहा है। इस प्रकार इम स्याद्वादियों का माना गया सिद्धान्त है। अतः घट आदिको सत्त हेतु गया और पुद्गलद्रव्यपनेसे अनादि अनंतफ्नरूप साध्य भी ठहर गया अतः व्यभिचार नहीं है।
यथा चानादिपर्यन्ततद्विपर्ययरूपता । घटादेरात्मनोऽप्येवमिष्टा सेत्यविरुद्धता ॥ १४८ ॥ सर्वथैकान्तरूपेण सत्त्वस्य व्याप्त्यसिद्धितः । बहिरन्तरनेकान्तं तव्याप्नोति तथेक्षणात् ॥ १४९ ॥
तथा जैसे घट, फ्ट आदिकोंको द्रव्यार्थिक नयसे अनादि अनंतपना है और पर्यायार्थिक नयसे उससे विपरीत यानी सादि सान्तपना है। वैसे ही आस्माको भी वह अनादि अनंतपन और सादि सांतपन हम इस करते हैं । इस प्रकार हमारा हेतु विरुद्ध हेत्वाभास भी नहीं है । सर्व प्रकारसे एक ही नित्यपने या अनित्यपने धर्मके साथ सत्वहेतुकी न्याति सिद्ध नहीं है । घट, पट आदिक बहिरंग पुद्गल पदार्थ और ज्ञान, इच्छा, सहित आत्मारूप अंतरंग पदार्थोंमें विधमान हो रहा यह सत्वहेतु नित्य अनित्यरूप अनेकांतधोके साथ व्याप्ति रखता है । जैसा ही संपूर्ण जोंको दीख रहा है।
द्रव्यार्थिकनयादनाद्यन्तः पुरुषः सत्वात् पृयिन्यादितत्ववदित्यत्र न हेतोस्नैकान्तिकत्वं प्रतिक्षणविनश्चरे कचिदपि विपक्षेऽनवतारात् ।