Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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प्रथम सूत्रका सारांश
पहिले सूत्रके उत्तर व्याख्यानस्वरूप चार्तिकों और विवरण के प्रकरणोंको सामान्यरूपसे सूची इस प्रकार है कि प्रथम ही सम्यादीन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रका निदोष अक्षण करके मोक्ष
और मार्गका स्वरूप बतलाया है। लोको पसिद्ध होरहे पटना, दिल्ली, आगरा आदि नगरोंतक पहुंचने के लिये बनाये गये सीधे चौडे मार्ग । सडक, चौडा दगडा मादि) उपमेय हैं और मोक्षमार्ग उपमान है । मोक्षमार्ग पूर्णरूपसे निष्कण्टक और निर्दोष है । उसके एकदेश सहस होनेके कारण सडकोंको भी मार्गपनेका व्यवहार करलिया जाता है। समुद्र, आकाश, आदि अप्रसिद्ध पदार्थ मी प्रसिद्ध पदाकि उपमान होनाते हैं । संसारमें महिमाका मादर है । परिणाम और परिणामीके भेदकी विवक्षा होनेपर दर्शन ज्ञान आदि शब्दोंको ज्याकरण द्वारा करण, कर्ता और भाक्मे सिद्ध कर दिया है। शक्ति वास्तविक पदार्थ है। शक्तिमानसे शक्ति अभिन्न रहती है । नैयायिकोंसे मानी गयी सहकारी कारणोंका निकट आजानारूप शक्ति नहीं है। वह शक्ति द्रव्य, गुण, कर्म या इनका संबंधस्वरूप भी नहीं है। वैशेषिकोसे माने गये अयुतसिद्ध पदार्थोका समवाय और युत्तसिद्ध पदापोंका संयोग ठीक नहीं बनता है। शक्ति और शक्तिमान्का कथञ्चित् तादाल्य संबंध है । ज्ञानको सर्वथा परोक्ष माननेवाळे मीमांसकोका खण्डन कर ज्ञानका स्वतः यानी स्वसंवेदन प्रत्यक्षसे ज्ञान करना सिद्ध किया है । लब्धिरूप भाव इंद्रियां साधारण संसारी जीवोंके प्रत्यक्ष ज्ञानका विषय नहीं हैं। अतः परोक्ष हैं । चारित्र शब्दको सिद्ध करके कारकोंकी व्यवस्थाको बिरक्षाके अधीन स्थित किया है। विवक्षा और अविवक्षाका संबंध वास्तविक रूपोंसे है, अर्थ कल्पित रुपोंसे नहीं। इस सानपर पौद्ध और नैयारिकों के आग्रहका खण्डन कर वस्तुको अनेक कारकपना व्यवस्थित कर दिया है। सम्पूर्ण वस्तुएं सांश हैं। एक परमाणुमें भी स्वभाव गुण और पर्यायोंकी अपेक्षासे अनेक कारकपना है । परमाणु है ( कर्ता ) परमाणुको हम अनुमानसे जानते हैं ( कर्म ) परमाणुके द्वारा एक पाकाशका प्रदेश घेर लिया है ( करण)। परमाणुके लिये अणुकका विभाग होता है (सम्प्रदान )। परमाणुसे स्कंष उत्पन्न होता है ( अपादान ) । परमाणुका द्वितीय परमाणुके साथ संबंध है। ( संबंध ) । परमाणुमे रूप, रस, आदि गुण और स्निग्ध आदि पर्याय हैं (अधिकरण ) । हे परमाणो | तुम अनंत शक्तियोंको धारण करते हो ( सम्बोधन )। परमाणुके अनेक धर्म उसके मंश ही हैं। जो अशोंसे रहित है, यह अर्थक्रियाकारी न होनेसे अवस्तु है । इसके आगे सम्यग्दर्शनकी पूज्यताको बतलाते हुए द्वन्द समासमै पहिले दर्शनका प्रयोग करना सिद्ध किया है । ज्ञानभै समीचीनता सम्यग्दर्शनसे ही आती है । पीछे भले ही वह ज्ञान अनेक पुरुषार्थीको सिद्ध करा देवे । यहां ज्ञानकी महत्ताको सिद्ध करनेवाली अनेक शहाओंका निवारण करते हुए अंतमें यही सिद्धांत 80