Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 574
________________ ५६८। पन्तामणिः कहोगे सो तो ठीक नहीं है। क्योंकि सम्यग्दर्शनमें उस सन्यज्ञानका अन्तर्भाव हो जाता है ।" बन्धके पांच कारणोंका निरूपण करते समय भी संसारका प्रधानकारण मिथ्याज्ञान ही छूट गया है । अतः गाढसख्यके वश मिथ्याज्ञानका जैसे विध्यादर्शनमें अन्तर्भाव हो जाता है, वैसे ही सम्यग्ज्ञानका सम्यग्दर्शनमें अन्तर्भाव करलेते हैं । अथवा यदि स्वतन्त्र गुण होनेके कारण उस सम्यग्दर्शनमें उस सम्यग्ज्ञानका अन्तर्भाव नहीं करना चाहते हो तो मोक्षका कारण छह प्रकारका हो जायगा और इसी प्रकार मिध्यादर्शन और मिथ्याज्ञान विभावोंके स्वतन्त्र होनेपर बन्धका कारण भी छह प्रकारका ही समझा जायेगा । यह बात भी सूत्रकारको अभीष्ट ही है । क्योंकि मंथकार किसी प्रकारका विरोध न होनेके कारण तीनके समान पांच, छह प्रकारका भी मोक्षकारण इष्ट करते हैं । इसी बासको वार्त्तिक द्वारा कहते हैं । सम्यग्बोधस्य सदृदृष्टावन्तर्भावात्त्वदर्शने । मिथ्याज्ञानवदेवास्य भेदे षोढोभयं मतम् ॥ ११२ ॥ P मिथ्यादर्शनमें मिथ्याज्ञानके अन्तर्भाव करने के समान सम्यग्दर्शनमें सम्यग्ज्ञानका यदि गर्म करोगे तो बंध और मोक्षके कारण पांच प्रकार दी है। यदि इन दोनोंका भेद मानोगे तो बंध और मोक्षके कारण दोनों ही छह प्रकारके इष्ट हैं । यही विवक्षाके अधीन होकर आचार्योंका मंतव्य है ।. श्रीकुंदकुंदाचार्यने तो चैतन्यरूपसे अभेद होने के कारण तीनों गुणोंको एक मानकर मोक्षका कारण.. एक ही माना है । और निश्चय नयसे मोक्ष और मोक्षके कारणको भी एक ही कर दिया है, कथन भी अविरुद्ध है । तत्त्वज्ञानीके अभिप्रायरूप नयको समझ लीजिये । यह • तत्र कुतो भवन् भवेत्यन्तं घः केन निवर्त्यते, येन पंचविधो मोक्षमार्गः स्यादित्यधीयते- उस प्रकरणमें आप जैन यह बसलाइये कि आपके मसके अनुसार संसारमे किस कारण से अधिक धाराप्रवाहरूप होता हुआ बंध और किस कारण से वह निवृत्त होजाता है ? जिससे कि बंधके समान मोक्षमार्ग भी पांच प्रकारका माना जाय ऐसी प्रतिवादीकी जिज्ञासा होनेपर आचार्य. महाराज उत्तर कहते हैं । - तत्र मिथ्यादृशो बन्धः सम्यग्दृष्ट्या निवर्त्यते । कुचारित्राद्विरत्यैव प्रमादादप्रमादतः ॥ ११३ ॥ कषायादकषायेण योगाच्चायोगतः क्रमात् । तेनायोगगुणान्मुक्तेः पूर्वं सिद्धा जिन स्थितिः ॥ ११४ ॥ ব: হরমুন ܕܐ

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