Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
६२०
तत्वार्थचिन्तामणिः
( रहितपना ) ज्ञानमें नहीं आवेगा, तो मी आह्यग्राहकभाव बन गया । इस प्रकार लेजुमें दोनों ओर फांसे हैं। " सेयमुभयतः पाशा रज्जुः " इस नीति से आपको मामाहकभावका भी ज्ञान ग्रहण करना आवश्यक हुआ ।
.
बाध्यबाधकभावोऽपि बाध्यते यदि केनचित् । बाध्यबाधकभावोऽस्ति नो चेत्कस्य निराकृतिः ॥ १५० ॥
आप बौद्धोंने दूसरा बाध्यबाधकभाव भी संवेदन में नहीं माना है । वह बाध्यबाधकभाव भी यदि किसीके द्वारा बाधा जावेगा यानी आप उसमें बाघा देंगे, तभी तो उसका खण्डन कर सकेंगे । तब तो बाध्यबा कभाव सिद्ध ही हो गया । क्योंकि बाध्यबाधकभाव तो बाध्य हो गया। आपने ज्ञानको उससे रहित माना है और शुद्ध ज्ञानका कोई स्वभाव भाव हो गया। यदि ऐसा न मानोगे तो फिर किस बाध्यबाधकभावका खण्डन करोगे ? बताओ। जब बाध्यवाचकका खण्डन नहीं हुआ तो फिर यों भी बाध्यबाधकमात्र सिद्ध हो ही गया । " दोनों हाथ लड्डू हूँ" इस कथा - नकके अनुसार आपको बाध्यबाधकभाव माननेके लिये बाध्य होना पडेगा ।
कार्यापाये न वस्तुत्वं संविन्मात्रस्य युज्यते । कारणस्यात्यये तस्य सर्वदा सर्वथा स्थितिः ॥ १५१ ॥
"
आप बौद्ध संवेदन में कार्यकारणमावको भी नहीं मानते हैं । परंतु विचारिये कि कार्यको बनाये विना केवल संवेदनको वस्तुपना ही नहीं युक्त होता है । क्योंकि जो अर्थक्रियाओंको करता है, वही वस्तुभूत अर्थ माना गया है। यदि उस संवेदनका कोई कारण न स्वीकार किया जायेगा तो वह संवेदन सभी प्रकार से सदा स्थित हो जावेगा I " सदकारणवन्नित्यम् " अर्थात् जिस सत् पदार्थका कोई कारण नहीं है, वह नित्य है। किंतु ऐसा नित्यपना ज्ञानमें आपने इष्ट किया नहीं है । अत: कार्यकारण मानना भी आपका कर्तव्य हुआ ।" दोनों अंगुली घीमें हैं " इस नीति से हमारा अनेकांत सिद्धांत पुष्ट हुआ
वाच्यवाचकतापायो वाच्यश्चेत्तद्व्यवस्थितिः ।
परावबोधनोपायः को नाम स्यादिहान्यथा ? ॥ १५२ ॥
आप बौद्धोंने अपने संवेदनको वाच्यवाचकपन अंशसे रहित स्वीकार किया है। किंतु शिष्यको या प्रतिवादीको समझाने के लिये वाच्यवाचकसे रहितपना भी शब्दोंसे ही कहा जावेगा । तब तो वाच्यवाचकभावकी व्यवस्था बन गयी । क्योंकि वाच्यवाचकसे रहिसपना तो वाच्य हो गया और वादीके द्वारा बोला गया शब्द उसका वाचक हो गया । यदि ऐसा न मानकर अन्य प्रकार से मानोगे यानी विना कहे ही अपने हृदयकी बातोंको दूसरोंके हृदयमें उतारना चाहोगे तो शब्दके