Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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प्रतियों के उपशमन या क्षपण होनेपर होनेवाले कपाय और योगोंका आठसे लेकर वर्ष तको संयमिमों में भाव है। हां, तथा पूर्ववर्ती छठे प्रमादी या सास कवाय युक्त संयमिभों में मी अमाव है। पहिले पांचों में मो सुलभतासे अभाव है। यह भपिका अर्थ है। उपशम या क्षय हो चुकनेर होनेवाले योगोंका छठवेसे लेकर दावे तक अभाव है। निर्णय यह है कि सर्व ही जीवोंके भपने अपने मनुकूल पहनेवाले बंधके कारणों का विरोध है। भावार्थ-जितने पंषके कारण या उनके भेद प्रमेव जिन संयमी या असममी गुणस्थानो में सम्भव हैं, विना किसी प्रतिरोधके उन गुणस्थानों में उन उन कारणों की ससा माननी चाहिये । इस कारण बंधके कारण उन विशेष नियतहेतुओंकी अपेक्षासे पांच प्रकार ही सिद्धान्तित किये हैं। इस नयकी उकिसे प्रमाव आदिका हम मचारियों गर्म नहीं करते हैं । विशेष, यह कि भारह कषायोंका क्षयोपशम इसका अभिप्राय यह है कि अनन्तानुबन्धी आदि तीनों पौकरिभोंका उदयाभावी क्षम, भविष्यमें उदय आनेवासिओका उपक्षम भौर देशपाती संज्वलनका उदय हो । यद्यपि अनन्तानुबन्धीका उदय तो सम्बस्व होजानेपर ही दूरचुका है। फिर मी चारित्रमें उसका उपशम आवश्यक है। संजालनको मिलाकर अप्रत्यास्पानावरण और प्रत्याख्यानावरण इन बारहको लेनमें मी कोई विरोध नहीं है। किंतु ऐसी दशामे नौ नोकपायोंका छोरना टकसा है।
नन्वेवं पञ्चषा बन्धहेतौ सति विशेषतः ।
प्राप्तो निर्वाणमार्गोऽपि तावद्धा तन्निवर्तकः ॥ ११०॥
यहां किसीकी शंका है कि इस प्रकार विशेषरूपसे बन्धके कारणों को पांच प्रकार सिद्ध होनेपर उस कधकी निवृत्ति करनेवामा मोक्षका मार्ग भी उतनी ही संख्यावाला पांच प्रकारका होना न्यायसे प्राप्त है । फिर भापने मोक्षका मार्ग तीन प्रकारका कैसे कहा है ? उचर दीजिये ।
यथा त्रिविधे बन्धहेतौ त्रिविधी मार्गस्तथा पञ्चविधे बन्धकारणे पञ्चविधी मोक्षहेतुर्वक्तव्यः, विमिमीथकारणैः पञ्चविधवन्धकारणस्य निवर्तयितुमभक्तः, अन्यथा प्रयामा पञ्चानां वा बन्धहेतूनामेकेनैव मोघहेतुना निवर्तनसिद्धर्मोक्षकारणविध्यवचनमध्ययुक्तिकमनुषन्यतेति कश्चित् ।
जैसे कि बन्धके कारण मियादर्शन, मिथ्याज्ञान, और मिथ्याचारित्रके भेदसे तीन प्रकार होजानेपर मोक्षका मार्ग सम्यग्दर्शन, सम्याज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप धीन मकार कहा है, वैसे ही बन्धके कारण जब पांच प्रकारके आपने सिद्ध करदिये हैं तो मोझके हेतु मी पांच प्रकारके कहने चाहिये। क्योंकि मोक्षके तीन कारणोंसे पके पांच प्रकार कारणोंकी निर्यात हो नहीं सकती है। अन्यथा यानी ऐसा न मानकर दूसरे प्रकारसे मानोगे अर्थात् तीनसे भी पांचों की निति होना