Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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उस भोक्ता आत्माको अहंकार के साथ एकार्थपना तो प्रकृतिको उपाधि लग जानेके कारण भ्रांत ही है जैसे कि टेसूके फूल के संबंधसे कांच ललाई आ जाती है। यदि आप कापिल ऐसा कहोगे तब तो बताओ कि तुमने आत्माके अहंपनेको बाहिरसे आया हुआ औपाधिक भाव कैसे सिद्ध किया है ।
पुरुषस्व मावस्वाभावादईकारस्य तदास्पदत्वं पुरुषस्वभावस्यानुभक्तृित्वस्यौपाधिकमिति चेत्, स्यादेव यदि पुरुषस्वभावोऽहंकारो न स्यात् ।
सांख्य कहते है कि गके साथ यह कहना कि मैं ज्ञाता हूं, मैं कर्ता हूं, मेरे शरीर, धन भादिक हैं, इस हि अहंपरेके मनौर रोगों के भाव लामाके नहीं है, किंतु आत्माका स्वभाव तो अनुभवन करना है । इस कारण मोक्ता चेतयिता स्वरूप आत्माके अहंकारके साथ समानाधिकरणपना प्रकृतिकी उपाधिसे प्राप्त हुआ भई है। आत्माकी गांठका नहीं। अंथकार समझाते हैं कि इस प्रकार सांख्योंका कहना तब हो सकता था, यदि पुरुषका स्वभाव अहंकार न होता, किंतु मैं मैं इस प्रतीतिके उलेख करने योग्य आत्मा ही है । अतः अहंकार पुरुषका स्वभाव है।
मुक्तस्याहंकाराभावादपुरुषस्वभाव एवाहंकार, स्वभावो हि न जातुचित्तद्वन्त त्यजति, तस्य निःस्वभावत्वप्रसंगादिति चेन्न, स्त्रमावस्य द्विविधत्वात्, सामान्यविशेषपर्याय भेदात् । तत्र सामान्यपर्यायः शाश्चतिका स्वभावः, कादाचित्को विशेषपर्याय इति न कादाचिका वात्पुंस्यइंकारादेरतत्स्वभावता ततो न तदास्पदवमनुभवितृत्वस्योपाधिकर, येनाभ्रोतं न भवेत् कर्तृत्ववत् ।
सांख्य कहते हैं कि पुरुषका स्वभाव अहंकार नहीं हो सकता है, क्योंकि मुक्तजीवोंके अहंकार सर्वथा नहीं है । यदि अइंकार आत्माका स्वभाव होता तो मोक्ष अवस्थामें भी अवश्य पाया जाता, कारण कि स्वभाव कभी भी उस स्वभाववान्को नहीं छोड़ता है। यदि स्वभाव अपने तदास्मक भावतत्त्वोंको छोड देते होते तो वह वस्तु विचारी स्वभावोंसे रहित हो जाती, तथाच अश्वविपाणके समान असत् बन बैठनी, अतः अहंकार आत्माका तदारमक स्वभाव नहीं है । अब भाचार्य सिद्धांतकी प्रतिपत्ति कराते हैं कि उनका यह कहना भी ठीक नहीं है। क्योंकि सामान्यपर्याय और विशेषपर्यायके मेदसे स्वभाव दो प्रकारके होते हैं। तिनमें सामान्यपर्यायरूप स्वभाव तो अनादि कालसे अनंत काल तक सर्वदा वस्तुमें रहता है । जैसे कि जीवद्रव्य चेतना और पुद्गल रूप, रस आदिक । तथा विशेषपर्याय नामक स्वभाव तो द्रव्यमे कभी कमी हो जाते है । इस कारण सादि सात है जैसे जीवके क्रोध, मतिज्ञान, आदिक स्वभाव है और पुद्गल के कालापन, मीठापन आदि । इसी प्रकार आत्माके अहंकार, अमिलाषा आदिक कर्मोदयजनित स्वभाव है। अतः आत्माम कभी कभी होने की अपेक्षासे इन अहंकार आदिको उस आत्माके स्वभाव न मानना ठीक