Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पलापिन्सामणि
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Panora
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शंकाकार अपनी शंकाको हद करनेके लिये उपाय रचता है कि सम्मय है कि कोई को कहे कि यह कुचोधरूप शंका करना तो पहिले ही हो चुका है और सभी उस काका परिहार भी कर दिया गया है। अब फिर शंका नहीं करना चाहिये, यह कहना वो ठीक नहीं है । क्योंकि पहिले समाधानसे अतिरिक्त दूसरा शंकाका परिहाररूप समाधान आचार्य द्वारा दिखाने के लिये पुनः सकटाक्ष शंका की जारही है। इस शंकाके समाधानको आचार्य महाराज सष्ट का दिखलाते हैं।
सहकारिविशेषस्यापेक्षणीयस्य भाविनः । सदैवासात्वतो नेति स्फुट केचित्रचक्षते ॥ ४२ ॥
कार्यकी उत्पतिम उपादान कारण और निमित्तकारणके अतिरिक सहकारी कारणों की भी मपेक्षा होती है । जैसे रोटी बनानेमें चून, पानी, रसोइयाके अतिरिक्त चकला, पेलन मी भावशक में । मोक्षके कारण स्नत्रय अपि तेरहवे गुणस्थानके मादिमें हो चुके हैं। किन्तु भविष कालमें चौदहवे गुणस्थानके अन्तम होनेवाला विशेष सहकारी कारण अपेक्षित हो रहा है। वह पौवा शुक्रध्यान उस समम तेरहवेके आदिमें नहीं है । अतः तब मुक्ति नहीं हो सकती है। ऐसा स्वरूपसे कोई आचार्य बडिश समाधान कर रहे हैं। अमाधान लियानन्न स्वामीको भी अभीड है।
का पुनरसौ सहकारी सम्पूर्णेनापि रत्नत्रयणापक्ष्यते । पदभावाचन्मुक्तिमईवो न सम्पादयेत्, इति चेत्
बह फिर कौनसा सहकारी कारण है जो कि समीचीन रूपसे पूर्ण हुए भी स्लाम करके अपेक्षित हो रहा है, जिसके न होनेके कारण महन्तदेव शीघ्र ही मुक्तिको प्राप्त नहीं कर पाते है भगवा वह रत्नत्रय अर्हन्तदेवको मुक्ति नहीं मिला रहा है। आचार्य कहते है कि यदि ऐसा कहोगे तो इसका उत्तर सुनो!
स तु शक्तिविशेषः स्याजीवस्याघातिकर्मणाम् । नामादीनां त्रयाणां हि निर्जराकृद्धि निश्चितः॥४३॥
नाम, गोत्र और वेदनीय इन तीन अमातिया काँके निधयसे निर्जरा करनेवाली मामाकी वह विशेष शक्ति ही सहकारी कारण निश्चितरूपसे मानी गयी है । ध्यान, समुदात, भावनिर्जरा, संकर भौर आयुःकर्मके निषेकोका भुगाकर फल देना ये सब मामाके विशेष परिणाम हैं।
दकपाटप्रतरलोकपूरणक्रियानुमेयोऽपकर्षणपरपकविसंक्रमणहेतु भगवता खपरिणामविशेषः शक्तिविशेषः सोऽन्तरङ्गः सहकारी निश्रयसोत्पत्तौ रत्नत्रयस्य, सदभावे