Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
Au...
तत्त्वार्थं चिन्तामणिः
तेनायोगिजिनस्यान्त्यक्षणवर्त्ति प्रकीर्तितम् । रत्नत्रयमशेषा घविघातकरणं ध्रुवम् ॥ ४७ ॥ ततो नान्योऽस्ति मोक्षस्य साक्षान्मार्गो विशेषतः । पूर्वावधारणं येन न व्यवस्थामियर्त्ति नः ॥ ४८ ॥
तिस कारण से चौदहवें गुणस्थानवर्ती अयोगी जिनेंद्र के अंतिम समय में होनेवाला पूर्ण रत्नयही सम्पूर्ण कम समुदायको क्षय करने में निश्चयसे समर्थ कहा गया है। उस कारण से रत्नत्रयके अतिरिक्त दूसरा कोई विशेषरूप से मोक्षका अव्यवहित पूर्ववर्ती मार्ग नहीं है । अर्थात् रत्नही मोक्षका साक्षात् कारण है। जिससे हमारा पहिले उद्देश्य दलों युवकार लकवा करन स्थाको प्राप्त न होता । भावार्थ- पहिला अवधारण करना भले प्रकार व्यवस्थित है ।
cà
नन्वेवमप्यवधारणे तदेकांतानुषङ्गः इति चेत्, नाथमने कोतवादिनामुपालम्भो नयार्पणादे कांतस्येष्टत्वात् प्रमाणार्पणादेवानेकांतस्य व्यवस्थितेः ।
:
यहां किसीका साक्षेप शंका है कि इस प्रकार अवधारण करनेपर तो जैनोंको उस नियम करनारूप एकांत मंतव्यका प्रसंग आता है । आचार्य कहते हैं कि यदि ऐसी शंका करोगे तो इम जैन कहते हैं कि यह आपका उलाहना अनेकांतवाद की टेव रखनेवाले स्याद्वादियोंके ऊपर नहीं जाता है। क्योंकि सुनयकी प्रधानतासे एकांतवादको भी हम इष्ट करते हैं। जैसे कि मुक्तजीव सर्वज्ञ ही है, सम्यग्ज्ञान ही प्रमाण है, यथाख्यात चारित्रसे ही मोक्ष होती है । इत्यादि नय वाक्य अन्य की अपेक्षा रखते हुए समीचीन एकांतको प्रतिपादन करनेवाले माने गये हैं । हां ! प्रमाणके द्वारा ही वस्तुका निरूपण करनेकी अपेक्षासे अनेकांत मतकी व्यवस्था स्वामीने भी यही कहा है कि
I
हो रही है । श्रीमंतमद्र
1
अतोप्यनेकांतः प्रमाणनयसाधनः ।
अनेकांतः प्रमाणाचे तदेकवोर्पितान्यात् ॥ १ ॥
अम्य
62
पदार्थाने अनेक धर्म हैं । यह अनेकांत भी एकांत रूपसे नहीं है। किंतु प्रमाण और नयकी अपेक्षासे साधा गया. अनेकांत रूप है । तुम जिनेंद्र देवके गतमै प्रमाणदृष्टिसे अनेक धर्म स्वरूप वस्तुका निरूपण है और प्रयोजनवश प्रधानताको प्राप्त हुये एक धर्मकी नयदृष्टिसे समीचीन एक धर्म स्वरूप भी पदार्थ है । भावार्थ--- अनेकांत और समीचीन एकांत ये दोनों भी हमको इष्ट हैं। की नहीं अपेक्षा रखनेवाला केवळ एकांत तो मिथ्या है ।
I