Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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समांचिन्तामणिः
गयी है। हां, यदि उन समर्थ कारणोंकी विषक्षा की आवेगी, तब तो पूर्वक काम होबानेपर उत्तरगुण विकल्पनीय नहीं कहा जासा है 1 ऐसी बात कहने में हमको स्वयं कोई विरोध नहीं है। भावार्थ-समर्थ सम्यग्दर्शन नियमसे पूर्ण ज्ञानको पैदा कर देवेगा और समर्थशान मी पात्रिको उत्पन्न करदेवेगा। ऐसी दशा कार्यकारणों की दोनों मोरसे समन्याप्ति है । उस समय मेदके सापक भाज्यशारूप हेतुको हम उठा लेवेंगे।
इति दर्शनादीनां विरुद्धधर्माभ्यासाविशेषेप्युपादानोपादेयमावादुपरं पूर्णस्तितानियत न तु पूर्वमुत्तरास्तित्वगमकम् ।
इस प्रकार दर्शन, ज्ञान और चारित्र गुणोंको विरुद्ध भोके अन्तररहित अधिकरण होते हुए भी सामान्यपनेसे उपादान उपादेय भावकी अपेक्षासे उत्तरवर्ती गुण पूर्वगुणके अस्तित्व के साथ नियत है। किंतु पूर्वका गुण तो उत्तरवर्तीके अस्तित्वका ज्ञापक नहीं है । भावार्थ-लोकमै भवर न्मतिरेकके द्वारा व्यक्तिरूपसे कार्यकारणभावका निर्णय होना अधिक प्रसिद्ध है। सामग्रीरूप समर्थ कारणका तो कहीं कही विचार किया जाता है । क्योंकि समर्थ कारणके उत्तरकाली जब कि सालाण कार्य हो ही जाता है, ऐसी दशामें कार्यको बनाने के लिये किस किस कारण की योजना करना चाहिये, ऐसा विचार एक प्रकारसे व्यर्थ पडता है ।
ननूपादेयसम्भूतिरुपादानोपमर्दनात् । दृष्टेति नोत्तरोन्दूतौ पूर्वस्यास्तित्वसंगतिः ॥ ७९ ॥
यहां अब न्यारी शंका है कि उपादेय कार्यकी उत्पत्ति तो उपादान कारणके मटियामेट (ध्वंस ) हो जानेसे देखी गयी है, जैसे कि तैकके नष्ट हो जाने पर दीपकलिका रासावके ध्वंस हो जाने पर नाज, करम भादि अभवा कमलके उपयोगी कीपडके सर्वथा बिगड जानेपर कमक होता है। इस प्रकार उपादेय अवस्थामै उपादानका अब समूलचूल नाश हो चुका तो उच्च गुणकी उत्पति हो जानेपर उपादान कारण कहे जारहे पूर्व गुणके अस्तित्वका परिज्ञान आप जैन नहीं कर सकेंगे। क्योंकि वह पदार्थ ही नहीं रहा। " कार्योत्पादः क्षयो हेतोः ॥ ऐसा मतमद वचन है। उपादान कारणका पूर्व भाकारसे क्षय हो जाना ही कार्यकी उत्पत्ति है।
सत्यप्युपादानोपादेयभावे दर्शनादीनां नोपादेयस्य सम्भवः पूर्वस्यातिता स्वकाले गमयति, तदुपमर्दनेन तदुभतेः । अन्यथोचरप्रदीपज्वालादेरस्तिस्वासक्ति तथा च इतस्वकार्यकारणभाव। समानकालत्वात् सव्येतरगोविषाणवदित्यस्याकूतम् ।
कारिकाका भाष्य यों है कि दर्शन, ज्ञान और चारित्र गुणोंका बेनों के अनुसार उपादान उपादेयमाव होते हुए भी उपादेय कार्यका उत्पन्न हो जाना पूर्वकारणकी सलको अपने कामे