Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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अपार्थचिन्तामणिः
इसलिये मानना पड़ता है कि मोहनीय कर्मके क्षयसे युक्त होरहा और प्रगट हो गया है केवलज्ञान जिसके ऐसा आला अपने चारित्रक विशेष स्वभावसे सहित होकर अव्यवहित उत्तरकालमै मोक्षका प्रधान कारण है । वह अयोगकेवली महाराजका आत्मा ही चौदहवें के अन्त समयमे स्थूल सूक्ष्म शरीरोंसे रहित हो जानापनरूप मोक्षके कारण पूर्णरत्नत्रयरूपसे परिणमन करता है I यह बात निश्चयनये. बाघारहित होकर सिद्ध हो चुकी । यह और व्यवहारनयका आश्रय लेकर सो पहिला ही यह तेरहवे गुणस्थानका यह रत्नत्रय अनंतकाल तककी मोक्षका कारण है । अथवा चौदहवेंका रत्नत्रय अनंत सिद्धपर्यायोंका कारण है, जोकि पर्याये भविष्यमें होनेवाली है । यह बात प्रामाणीकपने से सिद्ध हो चुकी है । अतः तत्त्वोंको जाननेवाले विद्वानोंको अधिक विवाद करनेसे विश्राम लेना चाहिये । इस विषय में विवाद करनेसे कुछ लाभ न निकलेगा । बहुत अच्छा विचार होकर कार्यकारणभावका निर्णय हो चुका है । सारके निकल चुकनेपर खलका कुचलना व्यर्थ है ।
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संसारकारणत्रित्वासिद्धेर्निर्वाणकारणे ।
त्रिवं नैवोपपद्यतेत्यचोद्यं न्यायदर्शिनः ॥ ९६ ॥ आद्यसूत्रस्य सामर्थ्याद्भवहेतोस्त्रयात्मनः । सूचितस्य प्रमाणेन बाधनानवतारः ॥ ९७ ॥
यहां नैयायिककी दूसरे प्रकारसे शंका है कि मोक्षसे विपरीतता रखनेवाले संसारके कारणों को तीनपना जब असिद्ध है तो मोक्षके कारण मी तीनपना सिद्ध नहीं हो सकता है । जब कि संसारका कारण अकेला मिध्याज्ञान है या मिथ्याज्ञान और मोहजाल ये दो हैं, ऐसी दशामें मोक्षके कारण भी एक या दो होने चाहिये । ज्जरको उत्पन्न करनेवाला यदि पित्तदोष है तो औषधि भी sto fuaaोषको समन करनेवाली होनी चाहिये | आचार्य कहते हैं कि इस प्रकारका न्यायसे देखनेवाले नैयायिकको ग्रह कुचोध नहीं करना चाहिये। क्योंकि यदिके सूत्रमें मोक्षका कारण तीनको बतलाया है | अतः बिना कहे हुए अर्थापत्तिकी सामर्थ्य से ही इस बातकी सूचना होजाती है कि संसारके कारण भी तीन स्वरूप है। इस सूचनाको बाधा देनेवाला कोई भी प्रमाण उतरता नहीं है ।
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'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग ' इत्याद्यत्रसामर्थ्यात्, मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्राणि संसारमार्ग इति सिद्धेः सिद्धमेव संसारकारणत्रित्वं बाधकप्रमाणाभावात्ततो न संसारकारण त्रित्वासिद्धेर्निर्वाणकारण त्रित्वानुपपत्तिचोदना कस्यचिन्न्यायदर्शिता मावेदयति.
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये तीनों समुदित होकर मोक्षके मार्ग हैं | इस पहिले सूत्रकी सामर्थ्य से मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र ये तीन संसारके मार्ग हैं, यह