Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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सक्वार्ये बिन्तामणिः
व्यवस्थाओं के परिवर्तनका संबंध न होता तो जाते हुए समयका हम ताप न करते । प्रत्युत उस सम बमें दो लात और लगाकर प्रसन्न होते, जिससे कि वह शीघ्र ही अतिदूर चला जाता। जैनसिद्धांत यह है कि निश्चयकाल और व्यवहार काल ( द्रव्यपरिवर्तनरूप ) तो पदार्थों के परिणमन करने में सहकारी कारण हैं, जो कि पूर्व उत्तरपरिणामों के उत्पाद, व्यय करते हैं। ऐसा न मानोगे. तो आप शंका कार के द्वारा पुनः शंका उठाने से क्षायिकगुणकी कूटस्थता आती है और वैसा होने पर जैन सिद्धांत से आपके मंतव्यका विरोध होगा और दूसरे सांख्यमतका प्रवेश हो जावेगा, जो कि अनिष्ट है । प्रमाणसिद्ध भी तो नहीं है ।
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यदि पुनस्तस्य पूर्वसमयेन विशिष्टतोत्तरसमयेन च तत्स्वभावभूतता ततस्तद्विनाशोत्पादौ तस्येति मतम्, तदा हेत्वन्तरेणोन्मुक्तता युक्तता च तद्भावेन तदभावेन च विशि ष्टता तस्य स्वभावभूततैवेति तनाशोत्पादौ कथं न वस्य स्यातां यतो नैवं त्रिलक्षणोऽसौ भवेत्, ततो युक्तं क्षायिकानामपि कथञ्चिदुपादानोपादेयत्वम् ।
आप शंकाकारका फिर यदि यह मन्तव्य होवे कि उस क्षायिक भावकी पूर्व समय के साथ सहितपना और उत्तर समयसे सहितला ये दोनों उस गुणके तदात्मक होते हुए स्वभावरूप हैं । इस कारण उन स्वभावरूप धर्मोके उत्पाद और विनाश ये उसी क्षायिक भावके उत्पाद विनाश बोले जायेंगे, तब तो हम जैन कहते हैं कि उस क्षायिक सम्यग्दर्शन के दूसरे कारण कहे गये पूर्ण ज्ञान चारित्र करके रहितपना और इनसे सहितपना ये दोनों ही धर्म उसके स्वभावरूप भावकर के सहितता और उसके स्वभावरूप अभाव करके विशिष्टतारूप हैं। अतः वे विशिष्टतारूप धर्म उस क्षायिकमा आरमभूत स्वभाव ही हैं। इस प्रकार आत्मभूत स्वभावोंके नाश और उत्पाद, उस क्षायिक भाव क्यों नहीं कहे जायेंगे ! आप ही कहिये, जिससे कि वह इस प्रकार तीन लक्षण वाका न हो सके । भावार्थ-समयकी रक्षितता और विशिष्टता भी वास्तविक पदार्थ है। उन स्वमाको अवलम्ब लेकर तीन लक्षणपना सिद्ध किया है। उस कारण क्षायिक भावका भी किसी अपेक्षा से उपादान उपादेयपना मानना युक्तियों से परिपूर्ण हैं । मावार्थ - उदासीन या अनपेक्ष्य पदार्थ भी बडा कार्य करते हैं। साथमें टोसा रखनेसे मूंक कम लगती है एवं संग सवारी के रहनेपर पैदल चलने में परिश्रम ( थकावट ) कम व्यापता है। घरमें रुपया है, चाहे उसका व्यय नहीं कर रहे हैं। फिर धनसहित और धनरहितपनेके परिणमन आत्मामें न्यारे न्यारे हैं । गीली मिट्टीको सुखाकर पुनः उसमें पानी डालकर भींत मनाई जाती है। उस भीतको भी पुनः सुखाना पडता है । इन दृष्टान्तों में भिन्न भिन्न परिणामोंकी अपेक्षा मे त्रिलक्षणपना विद्यमान है । तीन लक्षवाला परिणाम सद्भूत पदार्थों में पाया जाता है ।
कारणं यदि सद्दृष्टिः सद्बोधस्य तदा न किम् | तदनन्तरमुत्पादः केवलस्येति केचन ॥ ८० ॥