Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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वस्वाचिन्तामणिः
लोहा भी चुम्बकके सिवाय अन्य पदार्थासे खिचता नहीं है। इस सिद्धांतका अष्टसहस्त्रीमें अच्छा स्पष्टीकरण किया है। पातम धानोंका स्वांशमै स्पष्टप्रतिभास होता है और सम्यग्दर्शन गुमका आत्मानुभूतिरूप उपयोग दशामें भले ही किसीको प्रतिभास हो जावे । महाविद्वान् पञ्चाध्यायीकारने इस विषयको बहुत स्पष्ट किया है । किन भयोपशम सम्यक्त्व, उपशम सम्यग्दर्शन या क्षाषिकसम्यक्सका अनुपयोग भवस्था सह प्रत्यक्ष नहीं होता है। प्रशम, संवेग, आदि कार्योंसे मनुमान कर सम्यग्दर्शनका अपक्ष प्रतिमास कर देते हैं। अतः दोनों गुणों में प्रतिमासके भेद होनेसे कवम्बित् भेद मानना चाहिये । पानके सिवाय आमाके सम्पूर्ण गुण निराकार हैं । जाति आदिका - उल्लेस करना, सम्पकत्व गुणमें नहीं सम्भवे है। मतः छमस्योंको सम्यक्त्व गुणका प्रायःकरके स्वपवेदन नहीं होपाता है।
अन्पया स्टेटसवमेदासि सर्वमेकमासज्येत, इति कचित्कस्यचित्कृतविदं साथयता लक्षणादिभेदादर्शनहानमोरपि मेदोऽभ्युपगन्तव्यः ।
सम्यमा पानी पदि उक्त प्रकार मिन अक्षण मिन्न संख्या आदि हेतुओंसे पदार्थोके भेदकी व्यवला न मानी जावेगी तो प्रत्येक वादी प्रतिवादीको अपने अपने इष्ट तत्वोम भेद मानना सिद्ध न हो सकेगा | सप तो सर्व ही पदायोको नमादेववादीके माने हुए मामा के समान एक हो जानेका प्रसंग हो बावेगा । " सर्व एकं भूयात् ।। प्रकृति पुरुष या जर चेतन और जीव पुद्गल इनका भेद न हो सकेगा। इस प्राकार किसी न किसी पदार्थमे अन्य किसी एक पदार्थका किसी नियत अपेक्षासे मेदको सिद्ध करनेवाले दार्शनिकके द्वारा पक्षण, संज्ञा, संख्या आदिके भेदसे सम्पदर्शन और सम्यग्ज्ञानमें भी भेद स्वीकार कर लेना चाहिये।
तत एव न चारित्रं ज्ञानं तादाल्यमुच्छति । पर्यायार्थप्रधानत्वविवक्षातो मुनेरिह ॥ ५८ ॥
ऊपर कहे गये इन कारणोंसे ही पारित्र और ज्ञान गुण भी तादात्मको प्राप्त नहीं हो सकते हैं। क्योंकि मात्माके चारित्र गुणकी पर्याय यथास्यासचारित्र है और आत्माके चेतना गुणकी पर्याय सम्पज्ञान है। इस मोक्षमार्गके प्रकरणमे उमास्वामी.मनि महाराजकी पर्यायाभिक नयके प्रधानताकी विवक्षा है। जैसे अभिस्वरूप अशुद्ध द्रव्यकी दाहकत्व, पापकत्व, शोषकत्व, स्फोटकत्व पर्याय न्यारी है, वैसे ही मामाके तीन गुणोंकी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र पर्याय मिल हैं।
नशान चारित्रात्मकमेव ततो मिमलक्षणत्वादर्शनवदित्यत्र न स्वसिद्धान्तविरोधः, पर्यापार्यप्रधानस्वस्येह रखे खकारेण विवक्षितत्वात् ।