Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
अमोदिशा और ऊर्ध्वदिशासे अन्य छह परमाणुका संयोग या बन्ध हो जाता है। बरफी या ईटके आठ कोंचे नहीं पकरता। किंतु इनकी चौरस सपाट १ भीतोंको यहां परमाणुके पैलोंका दृष्टान्त कहा है। पीवीरनंदी सिद्धांतचक्रवर्तीने आचारसारमै परमाणु और अलमेकाकाशको छहः पैलवाला चौरस सिद्ध किया है। ऐसे छह पहलू परमाणुओं या ऐसे असंख्यात प्रदेशोंसे ठसाठस लोकाकाश भरा है।
तस्य विमुत्वाब तबिरोध इति चेत, व्याहतमेतत् । विमुश्कप्रदेशमात्रश्चेति न किञ्चित्सकलेभ्योऽशेम्यो निर्गतं तत्त्वं नाम सर्वप्रमाणगोचरत्वात् खरश्रृंवत् ।।
यदि यहां नैयायिक यों कहें कि वे आकाश, श्रात्मा आदि द्रव्य वो सम्पूर्ण मूर्त द्रव्यों के साथ संयोग रखते हुए व्यापक हैं, इस कारण उनको अनेक देशों में व्यापकपनेका विरोध नहीं है, ऐसा कहनेपर तो ग्रंथकार कहते है कि यह व्याघात दोष हुषा, जैसे कोई अपनेको बन्ध्याका पुत्र कहे, या बहुत चिल्लाकर अपनेको मौनव्रती है, अपना साकारको
महिमा आयेगा " ऐसी घोषणा होनेपर कोई बीन आकर और चिल्लाकर अपनेको मरा हुआ कहकर लाख रुपये मांगे, यहां जैसे आगे पीछेके उद्देश्य विधेयदलों में पदतो व्याघात दोष है, वैसा ही आला और भाकायको व्यापक मानकर केवल एक प्रदेशमै रहना मानना या अंशोंसे रहित कहना मी विरुद्ध है । इन हेतुओंसे यह बात निर्विवाद सिद्ध हो जाती है कि अगत्में कोई मी पदार्य या तत्त्व संपूर्ण अंशोंसे रहित नहीं है । जिस पदार्यमे कमसे कम शेयत्व अमका प्रमेयत्व धर्म न होगा, वह पदार्थ वो सर्व' प्रमाणोमसे किसी एक ममाणका भी विषय न हो सकेगा, तथा च गषेके सींगोंके समान वह अंशोंसे रहित माना गया पदार्थ अवस्तु है, असत् है।
यदा स्वंशा धर्मास्तदा वेभ्यो निर्गत वर्ष न किञ्चित्प्रतीतिगोचरतामन्चतीति सांशमेव सर्वतवमन्ययाक्रियाविरोधात् ।
और जब अंश कहनेसे धर्म पकड़े जाते हैं, फिर यदि वस्तुओको निरंश कहोगे, सब तो उन धर्मोसे रहित होकर कोई भी सल अगत्मे प्रतीतिके विषयपनेको प्राप्त नहीं होता है । इस प्रकार सिद्ध हुआ कि संपूर्ण तत्व अंगोंसे सहित ही है । इसके माने बिना अन्य प्रकारोंसे मान नेपर पक्रियाका विशेष है अर्थात् स्वमावोंसे रहिस होकर कोई भी तत्व छोटीसे छोटी मी अर्वकिपाको नहीं कर सकता है।
- तत्र चानेककारकत्वमषाधितमवषुध्द्यामहे भेदनयाश्रयणात, तथा च दर्शनादिश्चद्वानां सूक्तं कयोंदिसाधनत्वम् ।
• उपर्युक्त युक्तिओंसे हम पूर्णरीतिसे निर्णय कर लेते हैं कि उन आमा, वृक्ष, ज्ञान आदि तत्वों में अनेक कारकपना बाधाओंसे रहित होकर सिद्ध है । भेदको ग्रहण करनेवाले पर्यायायिक