Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
उस मार्गके कुछ थोडेसे सादृश्य मिल जानेसे उपमेय है। तभी तो मान्य श्रीअफलादेवने शुद्धि अर्थवाली मृजि धातुसे बनाये गये मार्ग शब्दमें अस्वरस प्रकट करके अन्वेषण ( ढूंढना ) अर्थ पाली मार्ग षानुसे मार्ग शब्द निष्पन्न किया है। उन्हें भी मोक्षमार्गको उपमान बनाना अमीष्ट है।
तदेकदेशदर्शनाचत्र तदुपमानप्रवृतेः प्रसिद्धत्वादुपमान पाटलिपुत्रादिमार्गोऽप्रसिद्धस्वान्मोक्षमार्गास्तूपमेय इति चेन, मोमगार्गस्य प्रमाणात प्रसिद्धत्वातं. समुद्रादेरसिद्धस्याप्युपमानवदर्शनात् तदागमादेः मसिद्धस्योपमेयत्वप्रतीतेः, न हि सर्वस्य तदागमादिवत्समुद्रादयः प्रत्यक्षतः मसिद्धाः।
लोकप्रसिद्ध होरहे उस मार्गका एक देश दीखनेसे वहां मोक्षमार्गरूप उपमेयमें सादृश्यको सूचित करते हुए पटना, मथुरा, आदिके मार्गरूप उपमानकी प्रवृत्ति हो रही है। इस कारण पटना, इंद्रप्रस्थ, कानपुर आदिका मार्ग लोकपसिद्ध होनेसे उपमान है और अप्रसिद्ध होनेसे मोक्षमार्ग तो उपमेय है। लोक प्रसिद्धको उपमान कहते हैं और अप्रसिद्ध उपमेय कहा जाता है। आचार्य कहते हैं कि यदि इस प्रकार कहोगे सो मी ठीक नहीं है। क्योंकि मोक्षमार्गकी प्रमाणसे प्रसिद्धि हो रही है, बह लोक प्रसिदिसे बढकर है । और अप्रसिद्ध होरहे भी वे समुद्र, पर्वत, बृहस्पति, दुर्ग मादि उपमान होते हुए देखे जाते हैं। जैसे कि यह शास्त्र समुद्र के समान गम्भीर है, यह राया पर्वतके समान उन्नत है, यह विद्वान् बृहस्पतिके सहश है, यह प्रासाद गढके समान हद है, इत्यादि खकों पर जिन मनुष्योंने समुद्र, पर्वत, बृहस्पति, दुर्ग आदिको नहीं भी देखा है, फिर भी उनके सम्मुख ये अप्रसिद्ध पदार्थ उपमान बना लिये जाते हैं और शास्त्र, विद्वान्, कोठी, राजा आदि प्रसिद्धोको उनका उपमेयफ्ना प्रतीत हो रहा है । प्रसिद्ध आगम, विद्वान् आदिकोंके समान वे समुद्र, राजा आदिक पदार्थ समी उपमान उपमेय व्यवहार करने वाले प्राणियोंको प्रत्यक्ष प्रमाणसे प्रसिद्ध नहीं है। फिर भी वे उपमान हैं अर्थात् आगम, विद्वान् आदि उपमेय तो प्रत्यक्षसे प्रसिद्ध होरहे हैं, किंतु समुद्र बृहस्पति, आदि उपमानोंका समीको प्रत्यक्ष होनेका नियम नहीं है।
समुद्रादेप्रत्यक्षस्यापि महखापमानत्वं तदागमादेः प्रत्यक्षस्याप्युपमेयत्वमिति चेत् , ताई मोक्षमार्गस्य महस्वादुपमानत्वं युक्तमितरमार्गस्योपमेयत्त्वमिति न मार्ग इव मार्गोऽयं स्वयं प्रधानमार्गत्वात् ।
समुद्र, पर्वत आदिकोंका यद्यपि सबको प्रत्यक्ष नहीं है, फिर मी महान्, गम्भीर, उन्नत, होनेके कारण समुद्रादिकोको उपमानपना है और प्रत्यक्ष होते हुए भी भागम आदिकोंको उनका उपमेयपना है, यदि ऐसा कहोगे तब तो मोक्षमार्गको भी महान्पना हो जानेके कारण उपमानपना मानना युक्त है। शेष अन्य पेशावरसे कलकचातक जानेवाले चौडे मार्ग ( सडक ) को उपमेयपना ठीक है । इस प्रकार मगरको जानेवाले मार्गके समान यह स्लत्रय मी मोक्षमार्ग है । यो इनके