Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
विधान किया है और आपने अमी कर्ता, भाव और करण चारित्र शब्दको साधते हुए भी चारित्र शब्दकी निरुक्ति की है। अतः कर्ता आदि णित्र प्रत्यय करनेवाले लक्षणसूत्रका जब अभाव है तो
पका चारित्र शह कर्ता आदिको कहनेवाला साधु शब्द कैसे हो सकता है ? बताओ । आचार्य कहते हैं कि यह कहना ठीक नहीं है। क्योंकि बहुलता करके कर्मसे अन्य उन कर्ता आदि भी मित्र प्रत्ययका विधान है। कहीं होना, और कहाँ न होना, कपर विकल्प रूपसे होजाना, काँचत् रूपांतर बनजाना, इस प्रकार बहुलता अनेक प्रकारकी है । मतः कर्ता आदिमें भी मित्र प्रत्यय होजाना व्याकरणशास्त्र से उपपल है ।
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एतेन दर्शनज्ञानशब्दयोः कर्तृसाधनत्वे लक्षणाभावो व्युदस्तः, “ युङ्ख्या बहुलं " इति वचनात् तथा दर्शनाथ, दृश्यते हि करणाधिकरण भावेभ्योऽन्यत्रापि प्रयोगो यथा निरदन्ति तदिति निरदनम्, स्वंदतेऽस्मादिति स्पंदनमिति ।
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इस उक्त कथनसे दर्शन और ज्ञान शब्द में कतमें युट् प्रत्यय सिद्ध करनेवाला कोई सूत्र नहीं है, यह कहना भी खण्डित करदिया जाता है। क्योंकि करण के अतिरिक्त प्राय: अम्य कारकों में भी युट् प्रत्यय करनेका व्याकरण शास्त्रमें सूत्र कहा है । और वैसा अनेक प्रयोगों में देखा भी जारहा है । करण अधिकरण और भावों से अतिरिक्त कारकों में भी युद्ध प्रत्ययका प्रयोग देखा गया है । जैसे कि जो नहीं खाया जाता है उसको निरदन कहते हैं। यहाँ युद्ध प्रस्थ कर्ममें किया गया है और जिससे चहना होवे, उसको स्पंदन (रथ) कहते हैं। यहां अपादान कारकमै युट् प्रत्यय किया है अथवा जिस द्रवपनेसे ( पसलेपन) पानी, तैल आदि पदार्थ महें, वह स्वेदन गुण है । द्यनेककारकात्मकं विरोधादिति चेन्न, विवक्षातः कार
seeज्ञानादि वस्तु काणां मचेरेकत्राप्यविरोधात् ।
एक ही ज्ञान दर्शन अथवा चारित्ररूप आदि वस्तु कर्ण, कर्म, करण और भावरूप अनेक कारकस्वरूप कैसे बन सकते हैं ? क्योंकि विशेष है। जो ही कर्ता है वह करण कैसे होगा ! या फर्म कैसे हो जायेगा ! यह कटाक्ष भी ठीक नहीं है। क्योंकि एक पदार्थमें भी वक्ताकी इच्छा से अनेक कारकोंकी प्रवृत्ति हो जानेका कोई विरोध नहीं है। बांस नटको धारण करता है और नट बांसको धारण करता है। बांस करके नट लेज पर घरा हुआ है और नट करके बोस धारण किया गया है । नट के लिये बांस है और बांसके लिये नट है। नटसे बांस स्थित है और बांससे नट स्थित है । नटपर बांस है और बांसपर नट है। ये सब केवळ शब्दाडम्बर नहीं है। किंतु पदार्थोंकी परिण तिके अनुसार भिन्न भिन्न कारकोंमें वक्ताकी इच्छा होना सम्बन्धित है। दालसे रोटीको खाना और रोटीले दाल खाना भी भिन्न भिन्न परिणामोंपर निर्भर है । बुभुक्षित देवदस स्वतंत्र रूपसे दाल और रोटीको खा जाता है। किंतु कभी कभी वही देवद्रच सुंदर सचित्ररूप सरस दालसे अधिक रोटियों को