Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
जाती है ! बताओ। क्योंकि दूसरे भिन्न पदार्थोंके समान वह शक्ति भी आत्मासे सर्वभा भिन्न है । जैसे कि सह्य पर्वतकी शक्ति बिन्ध्याचल पर्वत नहीं हो सकती है, वैसे ही आत्मा से भिन्न पड़ी हुई अों महण करनेकी शक्ति भी आत्माकी नहीं मानी जावेगी । यदि भिन्न होते हुए भी विशेष
के वश होकर वह शक्ति आत्माकी हो सकेगी तो बतलाओ कि उन शक्ति और आत्माओंका जोडनेवाला वह विशेषसंबंध भी कौन है ! । भावार्थ:- जैसे धन, पुत्र, गृह, आदि भिन्न होते हुए भी देवदत्त कहे जाते हैं, तद्वत् सहकारी कारणस्वरूप भिन्न शक्तियां भी शक्तिमानोंकी व्यवहृत हो जावेगी, इस नैयायिकके कथनपर आचार्य पूछते हैं कि वह संबंध कौन है ! स्वस्वामिभाव या जन्यजनकभाव अथवा अन्य कोई है ? सो बताओ !
न झात्मनोत्यन्तं भिन्नार्थग्रहणशक्तिस्तस्येति व्यपदेष्टुं शक्या, सम्बन्धतः शक्येति चेत्, कस्तस्यास्तेन सम्बन्धः १
आलासे अत्यंत भिन्न पड़ी हुयी अर्थको ग्रहण करनेवाली ज्ञानशक्ति उस आस्माकी है ऐसा आत्मा आत्मीय व्यवहार नहीं किया जासकता है । क्योंकि बन्ध्या और पुत्रके समान बीचमें सर्वथा मेद पडा हुआ है। यदि किसी सम्बन्धसे स्वस्वामिव्यवहार कर सकोगे तो बतलामो ! अर्थग्रहण शक्तिका आमाके साथ वह कौनसा सम्बन्ध है !
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संयोगो द्रव्यरूपायाः शक्तेरात्मनि मन्यते । गुणकर्मस्वभावायाः समवायश्च यद्यसौ ॥ १२ ॥
इस प्रकरणमें वैशेषिकोंकी गृहव्यवस्था यों है कि कायक सहकारी कारण द्रव्य, गुण और कर्म होते हैं । भावकार्योंके उपादान कारण द्रव्य होते हैं और असमवायिकारण गुण और कर्म होते हैं। अतः वैशेषिकों के मलसे द्रव्यरूप सहकारी कारणोंकी निकटता स्वरूप शक्तिका कार्यके उपादाकारण कहे गये आत्मा संयोगसम्बंध माना है। क्योंकि आपने द्रव्यका दूसरे द्रव्यसे संयोगसम्बंध होना इष्ट किया है। तथा चौवीस गुण और पांच कर्मरूप सहकारी कारणों के सान्निध्य रूप शक्तिका उपादानकारणके साथ वह सम्बंध समवाय माना गया है। आचार्य कह रहे हैं कि यदि आप वैशेषिक ऐसा कहेंगे:
चक्षुरादिद्रव्यरूपायाः शक्तेरात्मद्रव्ये संयोगः संबन्धोऽन्तःकरणसंयोगादिगुणरूपायाः समवायश्थ शब्दाद्विषयीक्रियमाणरूपायाः संयुक्तसमवायः सामान्यादेव विषथीक्रियमास्थ संयुक्तसमवेतसमवायादिदि मतः ।
उक्त वार्त्तिकका व्याख्यान यों है कि चक्षुः इंद्रिय द्वारा घटका प्रत्यक्ष करनेमें संयोग सत्रिकर्ष करणका सहकारी कारण है और आनाका तथा मनका संयोग तो अनवायो कारण होकर