Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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दुःखित जीवके नीरोग होजानेके उपायोंको जाननेकी अमिलाषा उत्पन्न होजाती है । सन्निपात या रोगके तीव्रवेग अथवा आयुष्यका अंत निकट होनेपर रोगको दूर करनेकी कारणभूत इच्छा नहीं पैदा होती है। माग्यमें टोटा चदा होनेकी अवस्था नफाके प्रकरण पर माल खरीदनेकी इच्छा नहीं उपजती है।
श्रेयोमार्गजिज्ञासोपयोगस्वभावस्यात्मनः श्रेयसा योक्ष्यमाणस्य कस्यचित्कालादिलब्धौ सत्यां वृहत् पापापायात् सम्प्रवर्तते श्रेयोमार्गजिज्ञासात्वात् रोगिणो रोगविनियतिजश्रेयोमार्गजिज्ञासावत् ।
करुणाकर आचार्य इसी अनुमानको भाष्य द्वारा स्पष्ट करते हैं कि कल्याणमार्गको जाननेकी इच्छा (पक्ष ) ज्ञानोपयोग स्वरूप और कल्याणसे युक्त होनेवाले किसी एक आत्माके काललब्धि, देशनालब्धि, सुकुल, योग्यदेश, शील, विनयाचार आदिके प्राप्त होनेपर बड़े ज्ञानावरण आदि पापोंके उपशम, क्षयोपशम हो जानेसे अच्छी तरह प्रवर्तती है (साध्य) मोक्ष मार्गको जाननेकी अमिलाषाफ्न होनेसे ( हेतु ) जैसे कि रोगीके रोगकी निवृति होनेपर पीछे उत्पन्न होनेवाले नीरोगता रूप कल्याणमार्गक जाननेकी इच्छा पहिले रोगअवस्थाम हो जाती है।
न तावदिह साध्यविकलमुदाहरणं, रोगिणः स्वयमुपयोगस्वभावस्य रोगविनिवत्तिजयसा योक्ष्यमाणस्य कालादिलब्धी सत्यां वृहतूपापापायात् संप्रवर्तमानायाः श्रेयो. जिज्ञासायाः सुप्रसिद्धत्वात्, तत्तत एव न साधनविकले श्रेयोमार्गजिज्ञासात्वस्य तत्र मावात् ।
प्रथम इस बातको विचार लो कि इस अनुमानमें दिया गया दृष्टांत तो साध्यसे रहित नहीं है। क्योंकि रोगी स्वयं ज्ञानस्वरूप है और रोगकी भली प्रकार निवृत्तिसे उत्पन्न हुए स्वस्थपनेके कल्याणमासे भविष्यमै छग जानेवाला भी है । उस रोगीके काललब्धि, सदेवकी प्राप्ति, आयुप्यकर्म, रोगका भोग करचुकना आदि कारणों के मिलने पर असाता वेदनीय आदि के पापोंके नाश हो जानेसे प्रवर्तित होती हुयी कल्याणमार्गके जाननेकी इच्छा अच्छी तरह प्रसिद्ध हो रही है। उस ही कारणसे वह उदाहरण विचारा हेतुसे रहित भी नहीं है। क्योंकि रोगीके कस्यामार्गकी उस इच्छा कल्याणमार्गका जिज्ञासापन विद्यमान है।
निरन्वयक्षणिकचित्तस्य संतानस्य प्रधानस्य वाऽनात्मनः श्रेयोमार्गजिन्नासेति न मंतव्यमात्मन इति वचनात्तस्य च साधितत्वात् ।
बौद्धके माने हुए अन्वयरहित होकर क्षणमें नष्ट होनेवाले आत्मभिन्न चित्तके अथवा पूर्व उत्तरक्षणों के भेदका परामर्श नहीं कर उन चित्तोंकी संतानरूप धाराके या कापिलोंके माने गये त्रिगुणस्वरूप प्रधान के जो कि आत्मा नहीं है मोक्षमार्गकी जिज्ञासा होती है, यह नहीं मानना