Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थे चिन्तामणिः
छोटे सम्यक् चारित्र शब्दसे इतना लम्बा चौडा लक्षणमे कहा गया अर्थ कैसे निकल पडता है ! इस अन्थिको सुलझाते हैं- देखिये, इस सम्यकूचरित्र पदमें पडे हुये सम्यक् इस विशेषण से दो अर्थ निकलते हैं । एक सम्यक्चास्त्रिका धारण करनेवाला सम्यज्ञानी जीव ही है, जो कि मले ज्ञानका आधार है तथा दूसरा अर्थ संसारके देतुओंका नाश करना यह प्रयोजन भी सम्यग्पदसे प्राप्त हो जाता है । और चारित्र शब्दसे बहिरंग और अंतरंग क्रियाओंका विशेषरूप से निवृत्ति हो जाना अर्थ निकला | इस प्रकार सम्यकूचारित्र शब्द से उक्त संपूर्ण अर्थ सिद्ध हो जाता है। उन उक्त विशेषणोंके न घटनेपर चाहे जिस क्रिया निरोधको वह सम्यक्चारित्रपना सिद्ध नहीं हो पाता है।
४२७
सम्प्रति मोक्षशब्दं व्याचष्टेः
उद्देश्य दल पढे हुए तीनों गुणका शब्दशास्त्र के अनुसार निरुक्तिसे सिद्धान्तित अर्थ कर चुके हैं। अब इस समय विधेयदलमें पडे हुए मोक्षमार्गके मोक्षशब्दका श्रीविद्यानंद आचार्य महाराज व्याख्यानरूप अर्थ करते हैं।
निःशेषकर्मनिर्मोक्षः खात्मलाभोऽभिधीयते ।
मोक्षो जीवस्य नाभावो न गुणाभावमात्रकम् ॥ ४ ॥
बाहिरसे आये हुए सम्पूर्ण ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों का बंध, उदय, सत्त्ररूप से अनन्त काल तक के लिये नाशकर स्वाभाविक आत्माके स्वरूपकी प्राप्तिको ही आत्माका मोक्ष कहा जाता है । दीपक बुझने के समान मोक्षको माननेवाले माध्यमिक बौद्ध, या शून्यवादियोंके कथनानुसार जीवका सर्वथा अभाव हो जाना, मोक्ष नहीं है । तथा ब्रह्माद्वैतवादियों के मतानुसार अपनी आत्माका खोज खोजाना भी मोक्ष नहीं है । और नैयायिक, वैशेषिकोंके अनुसार ज्ञान आदि गुणोंका नाश होकर केवल आत्माका जड होकर अस्तित्र रहना भी मोक्ष नहीं है। किंतु परद्रव्यका बंघ छूट जाने से शुद्ध चैतन्य, सुख आदि स्वरूप आत्माके स्वभावों की प्राप्ति हो जाना मोक्ष है ।
न कविपयकर्म निर्मोक्षोऽनुपचरितो मोक्षः प्रतीयते स निःशेषकर्मनिर्मोक्ष इति वचनात् । प्रायोग्यलब्धि की अवस्थामै मिथ्यादृष्टि जीवके भी कर्मभार कमी हो जाता है । सम्यग्दष्टिके तो कमौका बोझ और भी अधिक लघु हो जाता है तथा क्षपकश्रेणी अथवा बारहवें गुणस्थानके अंतमें तो कई कमौका क्षयतक भी हो जाता है, ऐसे कतिपय ( कितने ही ) कर्मों के विनाश हो जानेको मुख्यरूपसे मोक्ष नहीं कहते हैं। यह बात प्रमाणोंसे निर्णीत नहीं है। क्योंकि मोक्षके लक्षमें हमने " सम्पूर्ण आठ कर्मों के प्रागभाव के समानकाल रहित ध्वंस हो बाना वह मोक्ष है " ऐसा है । उपशमसम्यदृष्टि या बेदकसम्यग्दृष्टिके मिध्यात्व और अनंतानुबंधी के बंचका प्रागभाव विद्यमान है। चार घातिया कर्मों के नाश हो जाने पर तेरहवे गुणस्थान में जीवन्मुक्त श्रीमहंत परमेष्ठी अपर मोक्ष प्रतीत हो रहा है। मुख्रासे मोक्ष होना तो श्री सिद्धपरमेष्ठी ही में विद्यमान है !
कक्षा