Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
मींचनेपर सबके लिये अंधेरा नहीं हो सकता है । सभा कोई कोई वादी उस सम्यग्ज्ञानको एक ही प्रकारका मानते हैं। यह मंतव्य भी अनेकघा ऐसा विशेषण कहनेसे खण्डित हो जाता है । भावार्थवह सम्यग्ज्ञान प्रत्यक्ष, परोक्ष या मति श्रुत आदि भेदोंसे अनेक प्रकारका है ।
वत्र निश्चिवत्वादिविशेषणत्वं सम्यग्ग्रहणाल्लब्धम् । स्वार्थीकारपरिच्छेदस्तु ज्ञानग्रहणाव, तद्विपरीवस्य ज्ञानत्वायोगात् ।
उस मोक्षमार्गके प्रकरणमें प्राप्त हुये सूत्रमे दिये गये सम्याज्ञान शङ्कसे ही ऊपर कहा हुमा सम्पूर्ण लक्षण निकल पडता है। निश्चितपना, बाधारहितपना, आदि विशेषण तो शान के साथ लगे हुए सम्यग्पदके ग्रहणसे प्राप्त हो जाते हैं। और ज्ञान पदके ग्रहण करनेसे तो अपने और अर्थके आकारका परिच्छेद करना, यह अर्थ निकल आता है । जो उस अपने और अर्थक परिच्छेद करनेवाले ज्ञानसे विपरीत हैं। उन घट, पट आदिकोंको ज्ञानपनका योग नहीं है। यहां तक सम्यग्ज्ञान शब्दका अर्थ कर दिया गया है। .
सम्यक्चारित्रं मिलतपयलक्षाणा,... अब सम्यक्चारित्र शब्दकी निरुक्तिसे ही जाना जावे, ऐसे सम्यक्चारित्रके लक्षणको कहते हैं
भवहेतुप्रहाणाय बहिरभ्यन्तरक्रिया-1. . विनिवृत्तिः परं सम्यक्चारित्रं ज्ञानिनो मतम् ॥ ३ ॥
सम्यग्ज्ञानी जीवकी संसारके हेतु होरहे मिथ्यादर्शन, अविरति और कषायोंके सर्वथा नाच . करनेके लिये बहिरंग और अंतर क्रियाओंकी विशेषरूपसे निवृत्ति होजाना ही उस्कृष्ट सम्यक् चारित्र माना गया है।
विनिवृत्तिः सम्यक्चारित्रमित्युच्यमाने शीर्पोपहारादिषु स्वशीर्षादिष्यनिवृतिः सम्यक्त्वादिस्वगुणनिवृत्तिश्च तन्माभूदिति क्रियाग्रहणम् ।
सम्यक्चारित्रके लक्षणमे विशेष्यदल केवल विनिवृत्ति ही कह दिया जाता तो इष्टदेवीके सन्मुख शिरको काटकर चढा देने या पगडी, मुखासा ( मुकुटसा) के उतार कर फेंकने अपने सिर, पगडी आदि द्रव्योंकी निवृत्ति अथवा मिथ्यात्वंका उदय आनेपर सम्यक्त्व, प्रशम, आदि गुणोंकी निवृत्ति होजाना भी सभ्याचारित्र हो जावेगा । यह न होवे इसलिये क्रियाका ग्रहण किया है । मावार्थ-क्रियाओंकी निवृत्तिको चारित्र कहते हैं । द्रव्य और गुणोंकी निवृत्तिको नहीं।
बहिःक्रियायाः कायबाग्योगरूपायाः एवाभ्यन्तरक्रियाया एव च मनोयोगरूपाया विनिवृधिः सम्यक्चारित्रं माभूदिति क्रियाया पहिरभ्यन्तरविशेषणम् ।