Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वाचिन्तामणिः :
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यथास्थितायस्तित्वार्थास्तेषां श्रद्धानं सम्यग्दर्शनमिहोद्देष्टव्यं तथैव निर्दोषवक्ष्यमाणत्वात् ।
जिस प्रकार अपने अपने गुण, पर्याय, अविभागपतिच्छेद, अर्थक्रिया आदि धर्मोसे पदार्थ ठौक स्थित हो रहे हैं, उसी प्रकार को डावे व मानार्थ हैं : हा तत्त्वार्थोका जो श्रद्धान करना है, इस प्रकरण में जैन दर्शनकी संकेतप्रणाली ( परिभाषा ) के अनुसार उसे सम्यग्दर्शनके नामसे कहना चाहिये । क्योंकि उस ही प्रकारसे सम्यादर्शनका दोषरहित निरूपण आगे करनेवाले हैं। यहां कर्मधारय, बहुव्रीहि समास और प्य प्रत्ययके द्वारा सम्यादर्शनके नाममात्रकी प्रतिपादक कारिकाका स्पष्टीकरण कर दिया है । जो कि सम्यग्दर्शन शब्दकी निरुक्तिसे ही अर्थ निकला है।
सम्यग्शानलक्षणमिह निरुक्तिलभ्य व्याचष्टेः
इस प्रकरणमें प्रकृति, धातु, और प्रत्ययसे बने हुए शब्दकी निरुक्तिसे प्राप्त होरहे सम्यग्ज्ञानके लक्षणका व्याख्यान करते हैं
स्वार्थीकारपरिच्छेदो. निश्चितो बाधवर्जितः ।
सदा सर्वत्र सर्वस्य सम्यग्ज्ञानमनेकधा ॥ २ ॥ . सब काल, सब देश और सम्पूर्ण व्यक्तियोंको बाधासे रहित होते हुए स्वयं ज्ञानको और अर्थको आकार सहित निश्चित रूपसे जानना सम्यग्ज्ञान है और वह अनेक प्रकारका है । यहां आकारका अर्थ विकल्प करना या स्वपरपरिच्छेद करना है जो कि अन्य गुणों में नहीं पाया जाकर ज्ञानगुणमै ही पाया जाता है।
परिच्छेदः सम्यग्ज्ञानं न पुनः फलमेव ततोऽनुमीयमानं परोक्षं सम्यग्ज्ञानमिति तस्य निराकरणात् ।
अपनी प्रत्यक्षरूर ज्ञाप्ति करानेवाले करणरूप ज्ञानको सम्यग्ज्ञान कहते हैं किंतु फिर फलरूप ज्ञानको ही सम्यग्ज्ञान नहीं कहते हैं । मीमांसकोंने ज्ञानजन्य ज्ञाततारूप फलसे परोक्ष ज्ञानका अनुमान होजाना माना है । ऐसे उस सर्वथा परोक्ष ज्ञानका जैनियोने निराकरण कर दिया है। जैनोंने स्वांशमें सम्पूर्ण ज्ञानोंका प्रत्यक्ष होना इष्ट किया है । भावार्थ-स्वग्रहणकी अपेक्षा सर्व ही ज्ञान प्रत्यक्ष हैं कोई ज्ञान परोक्ष नहीं है। " भावप्रमेयापेक्षायां प्रमाणाभासनिङ्गवः ॥ प्रेसा श्री समंतभद्राचार्यका प्रमाण वाक्य है ।
स चाकारस्य भेदस्य न पुनरनाकारस्य किञ्चिदिति प्रतिभासमानस्य परिच्छेदः तस्थ दर्शनत्येन वक्ष्यमाणत्वात् । . . . . . ...
. और वह घट, पट आदि विशेषरूप आकारका विकल्प करते हुये परिच्छेद करना, सम्यरज्ञान है, किंतु फिर बालक या गूंगे मम्मज्ञानके समान पदार्थाका कुछ कुछ सामान्य झालोरन