Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पार्थचिन्तामणिः
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इस पर नैयायिक अनुनयसहित उत्तर देना चाहते हैं कि मैं मैं इस प्रकारके ज्ञानका उत्पन्न हो जाना ही आत्मारूप विशेष्यका प्रहण कहा जाता है और यह ज्ञान है, इस प्रकार जानका उत्पन्न हो जाना ही उस विशेषणस्वरूप ज्ञानका ग्रहण समझा जाता है। उतने मात्र से 'मैं ज्ञानवान् हूँ " इस प्रकारका यह विशिष्ट प्रत्यय उत्पन्न हो जाना कहा गया है । भले ही उन ज्ञानका अपने आप वेदन न होवे तो भी हमारे ऐसा कहनेपर अनवस्था दोष नहीं सम्भावित है इस प्रकार कोई एक नैयायिक कह रहे हैं । भावार्थ मैं और ज्ञानवाला हूं इन दो ज्ञानोंकी उत्पत्ति हो जानेसे ही आकांक्षा शांत होजाती है। ज्ञापकपक्ष अनवस्था दोष लगता है । कारक पक्षमै बीजाङ्कुर के समान अवस्था हो जानेको दोष नहीं माना गया है। यहां कार्यकारणभाव नहीं चल रहा है ।
ज्ञानास्मविशेषणविशेष्यज्ञानाहिव संस्कार सामर्थ्यादेव ज्ञानवानमिति प्रत्ययोत्पचेनोवस्थेति केचिन्मन्यन्ते ।
कमी पहिले समय में ज्ञानको विशेषण और आत्माको विशेष्य समझ लिया था, उसका संस्कार आत्मामें रक्खा हुआ है । उस संस्कारके बलसे ही " मैं ज्ञानवाला हूं " ऐसा निर्णय उत्पन्न हो जाता है । हमारे ऊपर अनवस्था दोष नहीं है। ऐसा भी कोई एक नैयायिक मान रहे हैं। तेऽपि नूनमनात्मज्ञा ज्ञाप्यज्ञापकताविदः ।
सर्व हि ज्ञापकं ज्ञातं स्वयमन्यस्य वेदकम् ॥
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नैयायिक भी नसे आत्माको नहीं जान पाते हैं और ज्ञाप्यज्ञापकमावके तत्त्वको भी नहीं समझते हैं जब कि सभी दार्शनिक इस बातको मानते हैं कि जो कोई भी ज्ञापक होगा यह जाना गया होकर ही दूसरेको समझानेवाला होता है। जैसे कि भूम हेतु वहिका शापक है । as चाक्षुषप्रत्यक्ष ज्ञात होकर ही अन्य वह्निको समझाता है । तथा वास्तविक रूपसे ज्ञापक देतु ज्ञात है वह स्वयं ज्ञात होकर ही अपने ज्ञेयकी ज्ञप्ति कराता है । जिसको आजतक स्वयं जाना नहीं है, उसका संस्कार भी कहांसे आवेगा ! पहिले कभी ज्ञानसे गृहीत हो चुके विषयकी ही तो धारणा कर सकते हो ।
विशेषणविशेष्ययोर्ज्ञानं हि तयोज्ञपिकं तत्कथमज्ञातं तौ ज्ञापयेत् । कारकत्वे तदयुक्तमेव तदिमे तयोर्ज्ञानमज्ञातमेव ज्ञापकं ब्रुवाणा न ज्ञाप्यज्ञापकभावविद इति
सत्यमनात्मज्ञाः ।
ज्ञानरूप विशेषणका और आत्मस्वरूप विशेष्यका ज्ञानही उन शान और आत्माका शापक माना गया हैं तो उन दोनोंका यह ज्ञान स्वयं अज्ञात होकर उन ज्ञात और आत्माको कैसे समझा देवेगा ? बतलाइये ।