Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वाविन्तामविक
कादाचित्कः कुतः सिद्धः पुरुषोपभोगः स्वसद्भावादिति चेत्
जैनोने पुरुषके भोगको नश्वरत्व सिद्ध करनेके लिये कमी कमी होनापन हेतु दिया मा । हम सांख्य पूंछते हैं कि जब आत्मा सर्वदा विद्यमान रहता है तो आत्माका उपभोम कमी कमी होवे, यह बात आपने किस प्रमाणसे सिद्ध कर लीनी है। समझाइये । आचार्य कहते हैं कि यदि सांख्य पेसा कहेंगे तो
कादाचित्कः परापेक्षासद्भावाद्विभ्रमादिवत् । बुद्धयध्यवसितार्थस्य शब्दादेरुपलम्भतः ॥ २४१ ॥ परापेक्षः प्रसिद्धोऽयमात्मनोऽनुभवोऽञ्जसा ।
परानपेक्षितायां तु दृष्टेः सर्वदार्शता ॥ २४२ ॥
हम जैन दूसरा अनुमान करते हैं कि वह पुरुषका भोग कमी कमी होनेवाला है (पतिज्ञा) क्योंकि भोगको दूसरेकी आकांक्षा करनेका सद्भाव बना रहता है। (हेतु ) जैसे चकाचौंध, कामल, पाकपक्य आदि दोषोंसे भ्रांतिज्ञान, संशयज्ञान कमी कमी होते हैं, वैसे ही बुद्धिके द्वारा निश्चित किये हुए शब्द, रूप, रस आदि विषयोंका आत्माको भोग होना देखा जाता है। इस कारण यह भालाका अनुमय परकी अपेक्षा रखनेवाला स्पष्ट अभ्रांतरूपसे प्रसिद्ध है । यदि पुरुषको चेतना करने या उपभोग करने में बुद्धिके अध्यवसायकी अपेक्षा हुई न मानोगे तो मारमा सर्वदशी और सर्वभोक्ता बन जावेगा । किसीके साथ दूरपना और अन्य किसीके साथ समीपपना तो रहा नहीं, भास्मा सर्वत्र व्यापक है ही।
परापेक्षितया कादाचित्कत्वं व्याप्तम्, तेन चानित्यत्वमिति तसिद्धौ तसिदिः। परापक्षिवा पुरुषानुभवस्य नासिद्धा, परस्य बुद्धथव्यवसायस्यापेक्षणीयत्वात , बुद्धधध्यवसितमर्थ पुरुषोत्तयत इति वचनात् । परानपेक्षितायां तु पुरुषदर्शनस्य सर्वदर्शितापतिः, सकलापबुद्धयध्यवसायापायेऽपि सकलार्थदर्शनस्योपपत्तेरिति योगिन इवायोगिनोऽ मुक्तस्य च सार्वज्ञमनिष्टमायातम् ।
__ वाचिकोंका भाष्य यों हैं कि दूसरे कारणोंकी अपेक्षा रखनेवालापन हेतु न्याप्य है और कमी कालमै उसन्न होनापन साध्य व्यापक है । इस कारण परापेक्षीपनसे कादाचित्कपना व्यास हो रहा है। अर्थात् जहां जहां परापेक्षीपना है, वहां वहां कादाचित्करना भी अवश्य विद्यमान है और इस साध्यको जब हेतु बना लिया तो उस कावाधिकपन हेतुसे अनित्यपना साध्य अविनामाव रखता है अर्थात् जहाँ जहाँ कादाविस्काना है, वहां वहां अनि याना भी आप है। भङ्गुरका और अनि