Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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तुरी आदिमें निश्चय न होवे, यह पक्षपातवाला नियम नहीं कह सकते हो, क्योंकि साध्यके न होने पर देतुके न रहने को अथवा कारणके न होनेपर कार्य उत्पन्न न होनेको व्यतिरेक कहते हैं । प्रकरण में चैतन्यके समान उस ज्ञानके मी न होनेपर उन श्वासास आदि प्रवृत्तियों के अभावका निश्चय हो रहा है । यदि सांख्य यह आग्रह करें कि उन तुरी, कुंचा आदिमें चेतनापना न होनेके कारण ही वे श्वास आदि प्रवृत्तियां नहीं होपाती हैं । किंतु जैन लोग जो ज्ञानके अभाव होनेसे वहां उन प्रवृत्तियों का निषेध कर रहे हैं सो तो नहीं है ।
इस प्रकार कापिलोंका कश्चन करना विना युक्तियोंके अपने कदाग्रह करनेकी सोगन्ध खा लेना है ! अथवा अहिफेन वाकर बौराया हुआ पुरुष जैसे अपनी मनमानी हांकता रहता है वैसे ही ये सांख्य प्राण आदिकोंको विज्ञानका कार्य न मानकर केवल चैतन्यसे होना मान रहे हैं । वास्तव में विचारा जाय तो वे विज्ञान के कार्य सिद्ध होते हैं । ज्ञानपर्यायसे परिणत होकर ही चैतन्य गुण कुछ कार्य कर सकेगा ।
सत्यम्, विज्ञानाभावे ता न भवन्ति, सत्यपि चैतन्ये मुक्तस्य तदभावादित्यपरे, तेषां सुषुप्तौ विज्ञानाभावसाधनमयुक्तम्, प्राणादिवृत्तीनां सद्भावात् तथा च न सोदाहरणमिति कुतः साध्यसिद्धिः ।
यहां सांख्यमत एकदेशीय कोई कहते हैं कि जैनियोंका कहना सत्य है । विज्ञानके हीन होनेपर श्वासोच्छ्रास आदिकी ने प्रवृत्तियां नहीं होती हैं, तभी को मुक्तजीवोंके चैतन्य के होनेपर भी उन प्राण आदि प्रवृत्तियों का अभाव है। यदि चैतन्यके कार्य प्राणादि माने जावे तो मोस अवस्था भी श्वास लेने आदिका प्रसंग आयेगा । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार कोई दूसरे वादी कह रहे हैं। श्वासोवास आदि क्रियाओंको ज्ञानके होनेपर मानना तो मुखप्रदेशमें अमृत लगे हुए घटके समान सुंदर प्रतीत होता है, किंतु मोक्ष अवस्थामै ज्ञान, सुखका न मानना पेटमें विष भरे हुए घटके समान अग्राह्य है । और उन एकदेशीय कापिलोंके यहां गहरी सोती हुयी अवस्थामे विज्ञानका अभाव सिद्ध करना तो युक्त नहीं पडेगा। क्योंकि सोते हुए मनुष्य के श्वासोच्छ्वास लेना, नाडी चलना, पाचक क्रिया होना आदि प्रवृत्तियां विद्यमान हैं । तब तो आत्मामै ज्ञान, सुख स्वभाव निषेध सिद्ध करनेके लिये दिया गया वह सोती हुयी अवस्थाका दृष्टांत नहीं बन सकेगा 1 इस कारण साध्यकी सिद्धि मला कैसे होगी ! बताओ। भावार्थ – कपिलके शिष्यों के कथनानुसार ही सोती हुयी अवस्थामे ज्ञान, सुख, वाले आत्माको बना कर जागते हुए, तथा स्वप्न लेते हुए और मोक्ष प्राप्त करनेपर भी आत्मामें ज्ञान सुख स्वभावकी सिद्धि हो जाती है । अतः दो सौ सीसवीं कारिका में दिया गया सांख्योंका अनुमान सिद्ध नहीं हुआ ।
सुखबुद्ध्यादयो नात्मस्वभावाः स्वयम चेतनत्वाद्रूपी दवदित्यनुमानादिति चेत्, कुतस्तेपामचेतनत्वसिद्धिः १