Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
भन्याचिन्तामणिः
३६१
सिा है कि गाद सोती हुयी अवस्थामै भी ज्ञान और सुख विद्यमान था। तभी तो जागते समय उसका मतिफलस्वरूप सुख और ज्ञानकी लहर उठ रही है। सुखके उत्पन्न हो जानेपर कुछ देर पीछे सक भी सुखास्वादनकी स्मृतिलहरें उठती रहती है। सोकर उठनेपर भी वैसे ही सुखके पीछे होनेवाले अनुवेदनोंका अनुभव हो रहा है। सोती हुयी अवस्था, संकल्प विकल्प रूप जो सप्न आते रहते हैं, उसको खप्न अवस्था कहते हैं और सप्नरहित सुखपूर्वक गहरी नींद लेनको आरमाकी सुषुप्तावस्या कहते हैं।
स्वप्नदर्शिनो हि यया सुप्तप्रबुद्धस्य सुखानुभवनादिस्सरणाद्विज्ञानस्वभावस्व विभावयन्ति तथा सुषुप्तस्यापि सुखमतिसुपुप्तोऽहमिति प्रत्ययात् । कथमन्यथा सुषुप्तौ पुंसवेतन. त्वमपि सिदचेत् प्राणादिदर्शनादिति चेत्
स्वप्न देखनेवाले पुरुषके सोकर उठे पीछे जागृतदशामे होनेवाले सुखके अनुभव आदिका सारण करनेसे स्वप्नदर्शी आस्माका विज्ञान, सुस्व, सभावसहितपना जैसे अनुमित किया जाता है वैसे ही स्वप्नरहित गाद सोते हुए मनुष्यके मी मैंने बहुत देरसे सुखपूर्वक अधिक शयन किया ऐसी प्रतीति होनेसे गहरी अवस्थामें भी आत्माके ज्ञान और सुस्वकी सिद्धि कर ली जाती है । यदि ऐसा न स्वीकार कर अन्य प्रकार माना जावेगा तो सोती हुई अवस्थामै मनुष्यके चेतनपना मी आप कैसे सिद्ध कर सकोगे : सुख, शान आदिका संवेदन करना ही तो चेतना है, बताओ । यदि प्राणवायु लेना, नाडीका चलना, आंखोंको मीचे रहनेका आभ्यन्तर प्रयल करना, मलमूत्र पारे रहना, मांस, रकम दुर्गन्ध न आकर ताजा बनाये रखना, आदि क्रियाओंसे सोते हुए पुरुषकी चेतनाका साधन ( अनुमान ) करोगे यों तो
यथा चैतन्यसंसिद्धिः सुषुप्तावपि देहिनः । प्राणादिदर्शनात्तबद्धोधादिः किन्न सिद्धयति ॥ २३६ ॥ जाग्रतः सति चैतन्ये यथा प्राणादिवृत्तयः । तथैव सति विज्ञाने दृष्टास्ता बाधवर्जिताः ॥ २३७ ॥
जैसे श्वासोच्छ्वास चलना मादिके देखनेसे गाद सोती हुयी अवस्थामें भी आत्मा चेतनपनेकी बढिया सिद्धि मानते हो । भावार्थ-उन क्रियाओंसे जीवित रहनेके स्वभावका पता चलता है, उसीके समान सोते हुए और जागते हुए आत्माके स्वभाव जाने जा रहे ज्ञान, सुख, फापन आदि क्यों नहीं सिद्ध हो जायेगे ! दूसरी युक्ति यह है कि जागते हुए पुरुषके चैतन्यके होनेपर ही जैसे श्वासोच्छास चलना, आखोका खोलना मींचना, उठना, बैठना, शब्द बोलना आदि प्रवृत्तियां देखी आती है, वैसे ही जागते हुए मनुष्यके विशेष ज्ञान होनेपर ही वे प्रवृत्तियां देखी जाती हैं। 26