Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
स्याद्वादिनः सांख्यस्य च प्रसिद्धमेव चेतनत्वं साधनमिति चेनानवबोधाधात्मकत्वेन प्रतिवादिनश्चेतनत्वस्थेष्टस्तस्य हतुव विरुद्ध सिपिरुयो हेतुः स्यात् ।
सांख्य कहते हैं कि स्याद्वादी और हम सांख्योंके मतमें आत्माका चेतनफ्ना प्रसिद्ध ही है। अत: चेतनत्व हेतु समीचीन है। अन्धकार कहते हैं कि यह कापिलोका कहना तो ठीक नहीं है। क्योंकि प्रतिवादी कापिलोंने अज्ञान, असुख और अकर्ता आदि स्वरूप करके आत्माके चेतनपनेको इष्ट किया है । और उस ज्ञानरूपसे प्रसिद्ध होरहे चेतनपनेको आप हेतु मानेंगे तो उस हेतुसे आपके मन्तव्यके विरुद्ध ज्ञानी आत्माकी सिद्धि हो जावेगी । अथवा चेतनत्व हेतु आपके माने हुए साध्यरूप अज्ञान, असुख स्वभावोंसे विरुद्ध समझे गये ज्ञान, सुखस्वभावोंके साथ व्याप्ति रखता है । इस कारण चेतनस्य हेतु बिरुद्ध हेत्वाभास हो जावेगा। भावार्थ-आपने चेतनत्वको अज्ञानी आरमाका धर्म माना है और वास्तवमै आत्मा ज्ञानवान है । अतः हम अपने.. जैनमतानुसार आपके चेतनव हेतुको सिद्ध मान लेवेगे तो पूर्वोक्त असिद्ध दोषका निवारण तो हो आवेगा, किन्तु दूसरा विरुद्ध दोष आपके चेतनत्व हेतुमें आजावेगा। .. साध्यसाधन विकलश्च दृष्टान्तः सुषुप्तावस्थस्याप्यात्मनश्चेतनत्वमात्रेणानवबोधादिस्वभावत्वेन चाप्रसिद्धः । कथम् -
और आपका दिया गया गाद निद्रामें सोता हुआ मनुष्यरूपी दृष्टांत तो ज्ञानी सुखी होने के कारण अज्ञान, असुख स्वभावरूप साध्यसे रहित है और पूर्वमें कहे हुए अनुसार आपकी ज्यापक आलाम चेतनपना सिद्ध नहीं हो सका है। अतः गहरा सोता हुआ मनुष्य चेतनपना रूप साधनसे मी रहित है । जिस दृष्टांत साध्य और साधन ये दोनों ही नहीं रहते हैं, उसको आपने अन्वय दृष्टांत कैसे प्रयुक्त किया है !, जब कि आप माद सोते हुए आत्माको सामान्य चेतनापनेसे
और अज्ञान असुख स्वभावीपनेसे प्रसिद्ध नहीं कर सके हैं । वस्तुतः विचारा जाय तो सोता हुआ वह आत्मा भी ज्ञानसुखस्वभाववाला है । सो कैसे ! वह सुनिये !
सुषुप्तस्यापि विज्ञानस्वभावत्वं विभाव्यते । प्रबुद्धस्य सुखप्राप्तिस्मृत्यादेः खप्नदर्शिवत् ॥ २३५ ॥
विचार कर देखा जाय तो गहरे सोते हुए मनुष्यके भी विज्ञान और सुख स्वभावसहितपना सिद्ध हो आता है। जैसे कि सोते समय स्वप्न देखनेवाले पुरुषके सुख और ज्ञान होते हुए अनुभवमै आरहे , उसीके सदृश गहरी नींद लेकर पुनः अच्छा जगे हुए मनुष्यके भी सुखकी पासि और नीदमे भोगे हुए सुखका स्मरण तथा चार छह दिन पहिले शयनकी अवस्था उत्पन्न हुए मुखका आजके शयनसुखके साथ सादृश्य प्रत्यभिज्ञान आदि हो रहा देखा जाता है । अतः