Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
उदासीन है और न चेतन, भोक्ता तथा शुद्ध है। यों आत्मामें जैसे ज्ञान, प्रसाद आदि स्वयं उसके घरके नहीं माने जाते हैं, वैसे ही उदासीनता आदि भी आत्माके स्वभाव नहीं मानना चाहिये, क्योंकि ज्ञान, कपन, आदि धर्मोसे उदासीनता, भोवतृता आदि स्वभावों में कोई अंतर नहीं है। जिससे कि कतिपय धर्म तो आत्मा निजके मान लिये जाये और मन माने कुछ धर्म प्रकृतिकी ओरसे आये हुए माने जावे । यह " अर्धजरतीय " न्यायका अधेडपना अच्छा नहीं है । यदि सांख्य जन परीक्षक मनुष्यों के समान विचार करेंगे तो वे इस बातका निर्णय कर लेवेगे कि आत्मा, ज्ञान, सुख-स्वरूप है, उस आत्माके अज्ञान, असुल और अकती स्वभाव मानने या ज्ञान और मुखको आत्माके गुग न होनेमें कोई भी प्रमाण नहीं है । न अक्योधः स्वभावो यस्यासौ अनवबोधस्वभावस्तस्य भावः अनवबोधस्वभावता, यो विग्रह करना।
सदारमानवबोधादिखभावश्चेतनत्वतः ।
सुषुप्तावस्थवन्नायं हेतुप्प्यात्मवादिनः ॥ २३०॥ . सांख्य अनुभव बनाकर कहते हैं कि सर्वदासे ही आस्मा अज्ञानस्वभाव और असुखस्वभाववाला है। ( प्रतिज्ञा ) अर्थात् ज्ञान, सुख आदिक आत्माके स्वभाव नहीं है, क्योंकि आस्मा चेतन है। ( हेतु ) जैसे कि गहरी नींदकी अवस्थामै सोये हुए पुरुषके ज्ञान और सुख कुछ मी नहीं प्रतीत हो रहे हैं । ( अन्वयदृष्टांत ) इसी प्रकार जागृत अवस्थामें भी आरमा ज्ञान, सुख स्वभाव. वाला नहीं है । भावार्थ-आत्माके ज्ञान, सुख स्वभाव होते तो सोते समय अपश्य जाने जाते, द्रव्य अपने स्वभावोंको कभी छोडता नहीं है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार कापिलोंका दिया गया यह हेतु अच्छा नहीं है। आस्माको व्यापक माननेवाले सांख्योंका चेतनत्वहेतु असिद्ध हेत्वाभास है।
स्वरूपासिद्धो हि हेतुश्यं व्याविनमात्मानं वदतः कुता
आस्माको सर्व व्यापक कहनेवाले सांख्य मतके एकदेशीय वादियों के मत यह हेतु निश्चय कर पक्षमें न रहने के कारण स्वरूपासिद्ध हेवामास है, वह कैसे है ! सो सुनो !
जीवो घचेतनः काये जीवत्वाबाह्यदेशवत् । वक्तुमेवं समर्थोऽन्यः किं न स्याज्जडजीववाक् ॥ २१ ॥
अनुमान बनाकर हम जैन भी आपके ऊपर अनिष्ट आपादन करते हैं कि शरीरमें भी जीव ( पक्ष ) निश्चयसे अचेतन है । ( साध्य) जीव होनेसे, ( हेतु ) जैसे कि शरीरके पाहिर देशमै जीव अचेतन है । ( दृष्टांत ) इस प्रकार भी दूसरा कोई वादी कहनेको समर्थ हो सकता है वश्रा