Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
नील, पीत आदिक आकारवाले ज्ञान अकेले अकेले चित्रज्ञान नहीं हैं उन भिन्न भिन्नसंतान के ज्ञानोंका समुदाय नहीं हो पाता है किंतु एकज्ञान समुदित आकारोंसे मिश्रित होगा तब तक चित्र कहा जावेगा । इस प्रकार यदि आप बौद्धोंका मत है तो सुनिये ।
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सह नीलादिविज्ञानं कथं चित्रमुपेयते । युगपद्भाविरूपादिज्ञानपंचकवत्त्वया ॥ १६५ ॥
यदि एक आम के कमसे होने वाले ज्ञान, सुख आदि पर्याय में एक द्रव्यपने से सांकर्यरूप चित्रता नहीं मानते हो तो एक समयमें साथ होते हुए नील, पीत आदिक आकारवारले विज्ञानको चित्रज्ञान कैसे स्वीकार कर सकोगे ? जैसे कि पापड खाते समय एक समयमै रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्दके पांचों इंद्रियोंसे जन्म पांच ज्ञान साथ होते हैं। उन पांचोंका मिश्रणात्मक एक चित्र ज्ञान तुमने नहीं माना है वैसे ही नीळ, पीत आदि आकारोंका मिश्रणरूप एक चित्रज्ञान तुमको नहीं मानना चाहिये ।
शक्यं हि वक्तुं वकुलीभक्षणादौ सहभमाविहारिनामयञ्चकामिव नीलादिज्ञानं सदपि न चित्रमिति, सहभावित्वाविशेषात् ।
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हम यों अवश्य कह सकते हैं कि कुरकुरी कचौड़ी खाते समय या रायलको सपोट कर पीने पर आदि प्रकरणों में एक साथ होनेवाले रूप, रस आदिकके पांच ज्ञान जैसे परस्परमें मिलकर एक चित्रज्ञानरूप नहीं बन जाते हैं । उसी प्रकार एक समय में होनेवाले नील, पीत आदिक आकारवाले ज्ञान मी मिलकर चित्रात्मक एक नहीं हो सकते हैं । भुरभुरी कचौडी खाने में या अनेक रंगवाले चित्रपटके देखने में अनेक आकारवाले ज्ञानोंका साथ होनापन समान है। कोई भी अन्तर नहीं है ।
तदविशेषेऽपि पीतादिज्ञानं चित्रमभिमदेशत्वा चित्रपतङ्गादौ न पुमा रूपादिज्ञानपञ्चकं क्वचिदिति न युक्तं वक्तुं तस्थाप्यभिन्नदेशत्वात् न हि देशभेदेन रूपादिज्ञानपञ्चकं सकृत् स्वस्मिन् वेद्यते, युगपज्ज्ञानोत्पत्तिवादिनस्तथानभ्युपगमात् ।
उस नील, पीत आदि ज्ञान और रूप, रस आदिक ज्ञानको एक कालमें होनेकी अपेक्षासे कुछ अंतर न होते हुए भी अनेक रंगवाले पतङ्गे, तितली, ततैया आदि या चित्रपटके नील, पीत कारवाले ज्ञानको अभिन्न देशमें होनेके कारण आप चित्रज्ञान कहें किन्तु फिर कहीं कहीं कचौडी, पापड, साम्बूलके भक्षण करनेपर साथमें होनेवाले रूप आदिकके पांच शानोंको चित्ररूप न मानें, इस प्रकार आपका पक्षपातसे कहना युक्तियों से सहित नहीं है क्योंकि रूप, रस आदिकके