Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्वार्थचिन्तामणिः
संसारमै केवल बकवादपना छा जावेगा । समीचीन व्यवहार कोई भी शेष न रहेगा । प्रभकर्ता, उत्तरदाचा, वाद, संवाद, पुण्यक्रियायें करना आदि कोई व्यवस्था नहीं बन सकेगी।
२९४
अभ्युपगम्य वाऽव्यभिचारि कार्यकारणभावं सुगतेतरसन्तानैकत्वापथेः सन्ताननियमो निरस्यते । तत्वतस्तु स एव मेदवादिनोऽसम्भवी केषांचिदेव क्षणानामव्यभिचारीकार्यकारणभाव इति निवेदयति
पौद्धोंने प्रथम तो अन्वयव्यभिचार और स्वीकृत किया है और जब हमने बुद्धसन्तान तथा अतिप्रसंग दिया।
वह
व्यतिरेकव्यभिचारसे रहित कार्यकारणभावको संसारीजीवोंकी संतान के एक हो जाने की नियमका खण्डन कर दिया है यह बौद्धों की व्यर्थ बकवाद है । वास्तवमे विचारा याग तो पूर्व उत्तरवर्ती पर्यायोंमें सर्वथा मेदको कहनेवाले बौद्ध व कार्यकारणभाव बनना ही असम्भव है। अब कि स्माससे कोष भिन्न है और कुशूल भी मिन है तब कुसूरुका कारण कोष ही क्यों है ? स्थास क्यों नहीं ? तन्तु है ? बताओ | इस प्रकार किन्हीं एक विवक्षितपर्यायों में ही व्यभिचाररहित संभवता है । आचार्य महाराज इसी बात को बौद्धों के प्रति निवेदन करते हैं। कथञ्चाव्यभिचारेण कार्यकारणरूपता । केषाञ्चिदेव युज्येत क्षणानां भेदवादिनः ॥ १८५ ॥
भी कारणं क्यो नहीं कार्यकारणभाव नहीं
पूर्व, अपर, कालमें होनेवाली स्वलक्षण पर्यायोंका सर्वथा भेद मानते रहनेकी देववाले बौद्धके मत किन्हीं विशिष्ट पर्यायोंका ही परस्परमें व्यभिचारदोषरहित कार्यकारणस्वरूपपना कैसे युक्त हो सकता है ? बताओं, यानी नहीं, क्योंकि घट, पट, पुस्तक आदि तथा देवदत, जिनदत मादि की पर्यायें अपनी अपनी पूर्व उत्तरवर्ती पर्यायोंसे और अन्य द्रव्योंकी दूसरी पर्यायोंसे एकसा भेद रखती हैं। सभी में सर्वथा भेद रहने के कारण नियम करनेवाला कोई नहीं है ।
कालदेशभावप्रत्यासत्तेः कस्यचित्केन चिद्भावाद्भावेऽपि व्यभिचाराच भेदेकांतवाद - नामव्यभिचारी कार्यकारणभावो नाम, तथाहि
.
यद्यपि किन्हीं किन्हीं पर्यायों में पूर्ववर्ती पर्यायसे उत्तरवर्ती पर्यायका अव्यवहित उत्तरकालमै होनारूप कालिकसम्बंध है जोकि कार्य और कारणोंके लिये उपयुक्त है। तथा किन्हीं पूर्व उत्तर पर्यायोंका एक देशमें ठहरनारूप दैशिक सम्बन्ध है । एवं लम्बाई चौडाई की समानता या ज्ञान, सुख, दुःख आदिक की समानता होनेसे किन्हीं किन्हीं पर्यायों में भावरूपसम्बंध भी है । तथापि उक्त तीनों सम्बंधों का व्यभिचार देखा जाता है । विवक्षितकार्य के योगे हैं उस देशमें भी अन्य कई पर्याये उपस्थित दें । एकसा ज्ञान
पूर्वसमय में अन्य मी अनेकपया सुख भी अनेक व्यक्तियों में