Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्त्वार्थचिन्तामणिः
पर्यायके उपादानकारण भविष्य में होनेवाले परिणाम नहीं हैं । अथवा पूर्वपर्यायसे भी पहिले काल में होनेवाला चिरतरमूतपूर्वका पर्याय जैसे उपादानकारण नहीं है अथवा स्वयं कार्य जैसे अपना उपादानकारण नहीं है । अथवा जो विवक्षित उपायोंमें अनुयायी न रहते हुए द्रम्योंके स्वभावों को धारण करनेवाले दूसरे उदासीन आस्मा जैसे उपादानकारण नहीं हैं अबत्रा इंद्रियां, हेतु, शब्द आदिक सहकारी कारणोंकी पर्याय जैसे उपादानकारण नहीं हैं। तभी तो ये पूर्वीच दृष्टांत उत्तरवर्ती उपादेयों में अन्वय रखनेवाले द्रव्यके स्वभाव होकर पूर्वपर्यायस्वरूप नहीं हैं ( ये सब उपतिरेक ष्टांत है) इस अनुमानमें उपनय और निगमन सुलभरीतिले बनाये जा सकते हैं ।
तथा विवादापनस्तदुत्तरपर्याय उपादेयः कथञ्चिरपूर्व पर्यायानुयायिद्रव्यस्वभावस्वे सत्युत्तरपर्यायस्वात् । यस्तु नोपादेयः स नैवं यथा तत्पूर्वपर्यायः तदुत्तरोत्तरपर्यायो वा, पूर्व पर्यायाननुयायिद्रव्य स्वभावो वा तत्स्वात्मा वा तथा घासाविति नियमात्, ततः सिद्धमुपादानमुपादेयख, अन्यथा तत्सिद्धेरयोगात् ।
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उपादान उपादेयभावको पुष्ट करने के लिये दूसरा अनुमान यह है कि विचारकाल प्राप्त हुबी उस पदार्थ की उत्तर कालकी पर्याय ( पक्ष ) उपादेय है ( साध्य ) क्योंकि पूर्वपर्मायो कथम्बित् सभ्य रखनेवाले द्रव्यका स्वभाव होती हुयी वह उत्तरपर्याय है ( हेतु ) । जो कोई उपादेय नहीं है, वह इस प्रकार कहे हुए हेतुसे युक्त भी तो नहीं है। जैसे कि उससे मी पहिले कालमै रहनेवाली पर्याय उपादेय नहीं है अथवा उस उत्तरपर्यायसे मी चिरमविष्यकाल में होने वाली उत्तर उत्तर पर्याय जैसे उपादेय नहीं है, अथवा इसकी पूर्वपर्यायोंमें अन्वय न रखनेवाला स्वभाववान् उदासीन दूसरा आत्मा, या पूर्वकी सभी पर्यायों में अन्वय रखनेवाला उस द्रव्यका निज आत्मा यानी स्वयं अकेला वही द्रव्य जैसे उपादेय नहीं है अथवा स्वयं उत्तरपर्याय ही अपना उपादेय नहीं है तभी तो पूर्वोक्त ये दृष्टांत विवक्षित पूर्वपर्यायोंने अम्बय रखनेवाले द्रव्यके स्वभाव नहीं है और उत्तरपर्याय भी नहीं हैं ( से व्यतिरेकदृष्टांत है ) । और उस प्रकार व्यासिसे युक्त हो रहे इस हेतुको धारनेवाला वह पक्ष है अर्थात् पूर्वपर्ययाने अनुयायी ब्रम्मका स्वभाव होकर उत्तर पर्यायपनेसे युक्त उत्तर पर्याय है (यह उपनय है ) । इस प्रकार नियमसे उत्तरपर्याय उपादे है ( निगमन ) | उस कारण अब तक उक्त दो अनुमानोंसे उपादान उपादेयमाव सिद्ध हुआ द्रव्यप्रत्यासत्तिके अतिरिक्त दूसरे मकारोंसे उन उपादान उपादेयोंकी सिद्धि नहीं हो सकती है।
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एकसन्तानवर्त्तित्वात्तथानियमकल्पने । पूर्वापरविदोर्व्यक्तमन्योन्याश्रयणं भवेत् ॥ १८९ ॥ कार्यकारणभावस्य नियमादेकसन्ततिः ।
ततस्तन्नियमश्च स्थानान्यातो विद्यते गतिः ॥ १९० ॥