Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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सत्त्वार्यचिन्तामणिः
I
पक प्रत्यय आत्मा अतिरिक्त आकाश आदिकों में भी ज्ञानका समवायसंबंध नहीं बन पाता है 1 इस प्रकार नैयायिकों का कहना युक्तियोंसे शून्य ही है । योगदर्शन और न्यायदर्शन ये दोनों स्वतंत्र मत हैं किंतु पदार्थनिरूपण करनेकी परिपाटी बहुभाग में दोनोंकी समान है । अतः नैयायिकको यौग भी कह देते हैं, न्यायका अभिमान करनेवालोंको पक्षपातयुक्त निरूपण नहीं करना चाहिये। हां ती अब समाधान सुनिये ।
खादयोऽपि हि किं नैव प्रतीयुस्ताव के मते ।
ज्ञानमस्मास्विति वात्मा जस्तेभ्यो विशेषभाक् ॥ १९६ ॥
गुण, गुणी और समवायका सर्वथा भेद माननेवाले तुम नैयायिकोंके मतमें आकाश, काल यदि द्रव्य भी क्यों नहीं ऐसा समझ लेने किं ज्ञान नामक गुण हम आकाश, काल, दिशाओं आदि में समवायसम्बन्धसे रहता है । इस प्रकार तुम्हारा जड आत्मा उन आकाश आदिकोंसे अंतर रखनेवाला रहा कहां ? अर्थात् ज्ञानके सम्बन्ध होनेके पूर्व आत्मा और आकाश आदि एकसे है । जपने और ज्ञानरहितपनेसे उनमें कोई विशेषता नहीं है ।
खादयो ज्ञानमस्मास्विति प्रतियन्तु स्वयमचेतनत्वादात्मवत् । आत्मानो वा मैक प्रतीयुस्तत एव खादिवदिवि ।
आकाश, काल आदिक भी ( पक्ष ) यह समझ लेवें कि ज्ञान हममें समवायसम्बन्धसे यता है ( साध्य : क्योंकि जैसे आत्मा ( दृष्टान्त ) अपने स्वाभाविकरूपसे अचेतन हैं ( हेतु ) वैसे ही आकाश, काल आदि भी स्वयं अपने डीलसे अचेतन हैं। अथवा स्वयं गांठके अचेतन होनेके कारण आकाश, काल, आदिक तुम्हारे मतानुसार जैसे यह नहीं समझते हैं कि ज्ञानगुण इममें समवेत है वैसे ही उसीसे इसी प्रकार स्वयं अचेतन होनेके कारण आत्मा भी यों नही प्रतीति करे कि ज्ञान मुझ समवायसम्बन्धसे रहता है। मेघ जैसे दरिद्र, धनवान्, मूर्ख, पण्डिल तथा राजा आदि बरं समानरूपसे चरलता है वैसे ही लक्षण भी पक्षपातरहित वर्तना चाहिये ।
जात्मवादिमते सन्नपि ज्ञानमिदमिति प्रत्ययः प्रत्यात्मवेधो न ज्ञानस्यात्मनि समवायं नियमयति विशेषाभावाद ।
जो नैयायिक सर्वथा भिन्न माने गये चेतनागुण के समवायसे आत्माका चेतन होना स्वीकार करते हैं, स्वरूपसे आत्मा भी पट पट आदिके समान जड है यों बोलने की टेव रखते हैं । उनके मसमें प्रत्येक आत्मासे जानने योग्य यह बुद्धि भर्लेही हो जाये कि मुझ आरमाने यह ज्ञान वर्तता है किन्तु यह होती हुयी बुद्धि मी पत्मामें ही ज्ञानके समवायका नियम नहीं करा सकती है क्योंकि आकाश वड, पदमादि जड पदार्थोंसे ज्ञानके सनवाय होनेकी लामै कोई विशेषता नहीं है ।