Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वावचिन्तामणिः
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अनुयायी है यह सच है। किन्तु फिर आप जैनोंके मतानुसार ध्रुवरूपसे अन्वय रखनेवाले एकद्रन्यकी अपेक्षासे चैतम्य अनादि अनंत कालतफ ठहरने वाला नहीं है क्योंकि एक क्षणमें उत्पन्न. होकर द्वितीय क्षणमें नष्ट होनेवाले विज्ञानरूप आत्माओंका उसी स्वरूपसे अन्वय चलना सत्य सिद्ध नहीं है । जैसे कि गंगाका पानी जलबिन्दुओंका समुदाय है। वहका वहीं एक बिंदु तो कानपुर, पयाग, बनारस, कलकत्ता, आदि देशोम अन्वित नहीं है। हां ! धारारूपसे उपचार स्वरूप ध्रुव भले ही कहलो हटा कहते हैं कि य कहनेगा कर मैद्ध मी अगलतत्त्वके मर्मको नहीं जाननेवाला है, कारण कि पास्मद्रष्यका पूर्वापर-पर्यायोंमें अन्वय न रहनापनकी इस भविष्य अनुमानसे बाधा आती है । इसी बातको प्रसिद्ध कर कहते हैं । चित गाकर सुनिये ।
एकसन्तानगाश्चित्तपर्यायास्तत्त्वतोऽन्विताः। प्रत्यभिज्ञायमानत्वात् मृत्पर्याया यथेदृशाः ॥ १५२ ॥
भापके माने गये एक संतान प्राप्त हुए चित्त ( आमाके) सम्पूर्ण परिणाम (पक्ष ) परमार्थरूपसे एक दूसरेमें अम्बित होरहे हैं ( साध्य ) क्योंकि यह वही है इस प्रकार वे प्रत्यभिज्ञान के विषय हैं। (हेतु ) जैसे कि शिवक, स्थास, कोष, कुशूल और घट पर्यायों में यह वही मृत्तिका है इस तरह प्रत्यभिज्ञानका विषयपमा है । ( अन्वय दृष्टांत ) भावार्थ-घूमते हुए चाकपर रखे हुए मिट्टीके लोंदको शिवक कहते हैं और वहां कुलालके हाथसे फैलाई हुयी उस मिट्टीको स्वास कहते हैं । अंगुलियोंसे मिट्टीको किनारेकी ओरसे ऊपरकी तरफ उठानेको कोष कहते हैं और ओखलीके समान फिनारोंका ऊपर उठना कुशूल कहलाता है । पीछे ग्रीवा, पेटके बन जाने पर वही मिट्टी घड़ा बन जाती है। इन संपूर्ण पर्यायों में मिट्टीपना स्थिर है । इसी प्रकार बालक, कुमार, युवा, अर्षवृद्ध और वृद्ध अवस्थाओं में वही एक देवदत्त है। यहांतक कि देव, मनुष्य, नारक, तिर्यच आदि अनेक जन्मांतरोंमें भी वही देवदत्त की एक आत्मा ओतप्रोत शेकर अनुष्ठान कर रही है।
मृत्क्षणास्तवतोऽन्विताः परस्यासिद्धा इति न मंतव्यं तत्रान्वयापहवे प्रतीतिविरोषात, सकललोकसाक्षिका हि मृद्धेदेषु तथान्धयप्रतीतिः सवयं पूर्व दृष्टा मृदिति प्रत्यभिज्ञानसाविसंवादिनः सद्भावात् ।
मिट्टीके पूर्व, अपर, काली होनेवाले सम्पूर्ण स्थान आदि परिणाम परस्पर ( आपस ) में वास्तविक रूपसे अन्वित होरहे हैं । यह बात दूसरे विद्वान् पानी बौद्धोंको असिद्ध है यह नहीं मानना चाहिये क्योंकि मिट्टीके उन पूर्व अपर विकारों में स्थूल पायरूप मृचिकापनसे अन्वय होनेको यदि चुरा मोरे संसारमें प्रसिद्ध होरही प्रतीति ओंसे विरोष होगा । मिट्टीकी भिन्न भिन्न .