Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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कचिन्तापपिः
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कथं प्रत्यभिज्ञानविषयः प्रत्यक्षणापरिच्छेद्यः ? प्रत्यभिज्ञानेन प्रत्यक्षविषयः कथमिति समानम्।
बौद्ध प्रश्न करते है कि जैनौने कैसे जाना कि प्रत्यभिज्ञानका विषय प्रत्यक्षके द्वारा नहीं जानने योग्य है यानी नहीं जाना जाता है तो हम जैन भी कहते हैं कि बौद्धोरे कैसे जाना कि प्रत्यक्षका विषय तो प्रत्यमिज्ञानममाणसे नहीं जाना जाता है ! यों यह प्रश्न और उसका उत्तर मी हमारा और तुम्हारा बराबर है।
तथा योग्यताप्रविनियमादिति चेत्तर्हि--
बौद्ध कहते हैं कि उस प्रकार भेदके जाननेमें प्रत्यक्षकी ही योग्यसा प्रतीति अनुसार नियत हो रही है अतः प्रत्यक्ष विषय प्रत्यभिज्ञान नहीं चलता है और प्रत्याभज्ञानके विषयको प्रत्यक्ष नहीं जान सकता है । ऐसा कहोगे तब तो ठीक है सुनिये ।
वर्तमानार्थविज्ञानं न पूर्वापरगोचरम् । योग्यतानियमात्सिद्धं प्रत्यक्षं व्यावहारिकम् ॥ १५६ ॥ यथा तथैव संज्ञानमेकत्वविषयं मतम् । न वर्तमानपर्यायमात्रगोचरमीक्ष्यते ॥ १५७ ॥
जैसे वर्तमान कालके अर्थको विशेषरूपसे जाननेवाला सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष उन पूर्व उत्तरवर्ती पर्यायोंको या उनमें रहनेवाले एकत्वको विषय नहीं करता है क्योंकि इंद्रियजन्य प्रत्यक्ष शानकी योग्यता वर्तमान अर्थके जानने में ही नियमित है। उस ही प्रकार प्रत्यमिज्ञान प्रमाण भी एकत्रको विषम करने में नियमित माना है। यह केवल वर्तमान पर्यायको विषय करनेवाला नहीं देखा जाता है। अर्थात् बैसे प्रत्यक्षके विषयमें प्रत्यभिज्ञान बाधा नहीं देता है पैसेही प्रस्यमिज्ञान विषयों प्रत्यक्ष मी बाधा नहीं दे सकता है क्योंकि वह उसका विषय नहीं है । जो जिसका विषय हो नहीं है वह उसका साधक या बाधक भी नहीं हो सकता है।
यद्विषयता प्रतीयते तत्तद्विषयमिति व्यवस्थायां वर्तमानार्थाकारविषयतया समी• स्यमाणं प्रत्यक्षं तद्विषयम्, पूर्वोपरविवर्तवत्यैकद्रव्यविषयतया तु प्रतीयमान प्रत्यभिज्ञान तद्विषयमिति को नेच्छेद ?
को ज्ञान जिसको विषय करनेवाला परीक्षकजनोंको प्रतीत होवे, वह ज्ञान उस पदार्थको विषय करनेवाला माना जाये, इस प्रकार व्यवस्था माननेपर तो जैसे यह बात आपको इष्ट है कि वर्तमानकालके अर्थोको उल्लेख करके विषम करता हुआ प्रत्यक्ष प्रमाण बालक, पशु, पक्षियों
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