Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वार्थचिन्तामणिः
यथैव वर्तमानार्थग्राहकत्वेऽपि संविदः । सर्वसाम्प्रतिकार्थानां वेदकत्वं न बुद्धयते ॥ १५८ ॥ तथैवानागतातीतपर्यायैकत्ववेदिका । वित्तिर्नानादिपर्यन्तपर्यायैकत्वगोचरा ॥ १५९ ॥
जिस ही प्रकार कि वर्तमानकालके अर्थोकी ग्राहकता होते हुए भी प्रत्यक्ष ज्ञानको सम्पूर्ण देशों में रहनेवाले वर्तमान कालके अनेक अर्थोकी ग्राहकता नहीं समझी जाती है वैसे ही भूत भविष्यत्की कतिपय पर्यायों में विद्यमान होरहे एकत्वको जाननेवाला प्रत्यामिज्ञानरूप मविज्ञान विचार: नादि अनंत मालकी या योग वार. एसको विषय नहीं कर सकता है । जितनी शक्ति होगी उतना कार्य किया जा सकेगा।
__ यथा वर्तमानार्थज्ञानावरणक्षयोपशमावर्तमानार्थस्यैव परिच्छेदकमक्षज्ञानं तथा कतिपयातीतानागतपर्यायैकत्वज्ञानावरणक्षयोपशमात्तावदतोतानागतपर्यायैकत्वस्यैव ग्राहक प्रत्यभिज्ञानमिति युक्तमुत्सश्यामः ।
___ जैसे थोडेसे वर्तमान अर्थोके ज्ञानको रोकनेवाले ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे वर्तमान कतिपय अओंको ही जाननेवाला इंद्रियों करके जन्य प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न होता है उस ही प्रकार भूत, भविष्यत् कालकी कतिपय ( कुछ ) थोडीसी पर्यायों में रहनेवाले एफलके ज्ञानका प्रतिबंधक होरहे ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमसे उत्पन्न हुआ प्रत्यभिज्ञान भी उतने ही भूत, भविष्यत् कालकी परि. मित स्तोक पर्यायों में रहनेवाले एकत्वका ही ग्राहक है। इस बातको हम युक्तियोंसे सहित देख रहे है, अनुभव कर रहे हैं । युक्तियोसे सिद्ध होगयो चर्चाको मान लिया करो।
तसाच्चैकसंतानवर्तिपटकपालादिमृत्पर्यायाणामन्वयित्वसिदेनॊदाहरणस्य साध्यसाधन विकलत्वं, येन चित्तक्षणसंतानव्याप्येकोऽन्वितः पुमान सिद्धयेत् ।
उस कारण अब तक सिद्ध हुआ कि एक संतानमें रहनेवाले शिवक, खास, कोष, कपाल और घट आदि मिट्टीको पर्यायों में भी मृत्तिकारूपसे ओतप्रोतरूप अन्वय भरा हुआ है । अतः एकसौ बावनवीं फारिकामें दिया गया मृत्पर्यायस्वरूप . उदाहरण तो अन्ययसहितपनेरूप साध्यसे
और प्रत्यभिज्ञानका विषयपनारूप हेतुसे रहित नहीं है। जिससे कि आत्माके ज्ञानपर्यायोंकी संतानमें व्यापकरूपसे अन्वययुक्त रहनेवाला एक आत्मा सिद्ध न होवे । मावार्थ-" सम्पूर्ण ज्ञान धाराओं में मोतियोंकी मालामे सूतके समान यह वही आत्मा है ।" इस अन्वमबुद्धिका जनक एक आत्मा द्रव्य सिद्ध होगया है ऐसे ही निजके सुख, चारित्र, अस्तित्व आदि गुणोंकी पहिली पीलेपर्यायों में आमा व्यापक है।