Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तस्वार्षचिन्तामणिः
ज्ञानमात्रात्तु यो नाम मुक्तिमभ्येति कश्चन । तस्य तन्न ततः पूर्वमज्ञत्वात्पामरादिवत् ॥ ५२ ॥ नापि पश्चादवस्थानाभावावावृत्त्ययोगतः ।
आकाशस्येव मुक्तस्य क्वोपदेशप्रवर्तनम् ॥ ५३ ॥
जो कोई कपिलमतानुयायी भला तीनको मुक्तिका कारण न मानकर अकेले ज्ञानसे ही मोक्ष होना स्वीकार करता है, उसके मतमें यह मोक्षमार्गका उपदेश कैसे भी नहीं यन सकता है। क्योंकि उस पूर्णज्ञान उत्पन्न होनेके प्रथम तो बह अज्ञानी है । अतः गंवार, छोकरा, आदिके समान मोक्षका उपदेश नहीं दे सकता है और पूर्ण ज्ञान उत्पन्न होने के पीछे वह शीघ्र ही मोक्षम चला जावेगा । संसारमें ठहरता नहीं है क्योंकि, कारणसे तत्काल कार्यका होना आवश्यक ( जरूरी है " कारणविलम्बादि कार्याणि विलम्बन्ते । कारणोंकी देरीसे कार्य उपजनेमे देर हो सकती है अन्यथा नहीं। इस कारण उसके वचनोंकी प्रवृत्तिका होना सम्भव नहीं है । जब पूर्ण ज्ञान होनेपर उत्तरक्षणमें मोक्ष हो जाती है तो शरीर, कण्ठ, तालु आदिसे रहित मुक्त आस्माके मोक्षमार्गके उपदेश देनेमें प्रवृत्ति करना हो सकता है ! जैसे कि आकाश उपदेश नहीं दे सकता है । वैसे ही मुक्त आत्मा भी शरीर आदि कारणोंके विना उपदेशरूप वचन नहीं बोल सकता है । यो मुक्तजीवको उपदेश देनेमें प्रकृति कहां हुई !
साधादशेषतत्त्वज्ञानात्पूर्वमागमज्ञानवलाद्योगिनः श्रेयोमार्गोपदेशित्वमविरुद्धमन्नत्वासिद्धेरिति न मन्तव्यम्, सर्वज्ञकल्पनानर्थक्यात्, परमतानुसरणप्रसक्तेश्च ।
___ यदि सांल्यमतानुयायी यह कहे कि सम्पूर्ण पदार्थोके प्रत्यक्षज्ञानसे पहिले योगीको पूर्ण शास्त्रका ज्ञान हो जाता है, उस शास्त्रज्ञानके क्लसे योगीके मोक्षमार्गका उपदेश देना बन जावेगा, इसमें कोई विरोध नहीं है । जब उसके पूर्ण श्रुतज्ञान है तो गंवार, या छोकरोंके समान अज्ञानीपन मी सिद्ध नहीं है । बादमें पूर्ण प्रत्यक्षज्ञान होनेपर वह साधु तत्काल मोक्षको चला जावेगा। ग्रन्थकार कहते हैं कि इस प्रकार कापिलोंका मानना ठीक नहीं है। क्योंकि जब श्रुतज्ञानसे ही मोक्ष आदि अतीन्द्रिय पदार्थोंका ज्ञान हो जायेगा तो सर्वज्ञकी कल्पना करना ही व्यर्थ है । आगमके द्वारा अतीन्द्रिय पदार्थों का उपदेश देना माननेपर आप सांख्यको दूसरे मीमांसकमतके अनुसरण ( नकल करने ) का प्रसंग आ जायेगा। जो कि आपको अनिष्ट है । प्रत्यक्ष किये विना शास्त्रों में प्रमेय लिखा नहीं जा सकता वचनरूप आगम कोई नित्य नहीं है ।
योगिज्ञानसमकाले तस्य तदित्यप्यसारं उच्चज्ञानपूर्वकत्वविरोधासदुपदेशस्य तत्वशानात्पश्चासु मुक्तेः खस्येव वाग्वृत्त्यघटनात् शरीरित्वेनावस्थानासंभवारे सन्मार्गोपदेशः ।