Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वाचिन्तामणिः
तप उस आरमाको पृथ्वी, अप, तेज, वायु इन चार भूसोंका परिणाम स्वरूप कहना चार्वाकोंका अनुचित है। क्योंकि यदि पृथ्वी आदि चार तत्त्वोंका परिणाम आत्माको माना जावेगा तो ऐस जड आत्मामें स्वसंवेदन प्रस्यक्ष बन नहीं सकता है । पृथिवी आदिकके पर्याय घटादिकोंका पहिरिन्द्रिय जन्य और बाहिरकी तरफ जाननेवाला प्रत्यक्ष होता है। अन्तरंग तत्वोंके उन्मुख होकर आत्म सम्बन्धी पदार्योंको जाननेवाला स्वसंवेदन प्रत्यक्ष पृथ्वी आदिके पने हुए जब आत्मा नहीं होसकेगा।
हित्यादिपरिणामविशेषश्चेतनात्मकः सकललोकप्रसिद्धमूर्तिरात्मा ततोऽन्यो न कश्चित् प्रमाणाभावादिति कस्य सर्वज्ञत्ववीतरागत्वे मोक्षो मोक्षमार्गप्रणेतृत्वं स्तुत्यता मोक्षमार्ग प्रतिपित्सा वा सिद्धयेत् । तदसिद्धौ च नादिसत्रप्रवर्तन श्रेय इति योप्याक्षिपति, सोऽपि न परीक्षकः स्वसंवेदनादात्मनः मिन्नत्वात् । बसंवेदन, भान्नमिनि नेत, न तस्य सर्वदा माधवर्जितस्वात् । प्रतिनियतदेशपुरुषकालवाधव जितेन विपरीतसंवेदनेन व्यभिचार इति म मन्तव्यम्, सर्वदेति विशेषणात् ।
न च क्ष्मादिविवर्तात्मके चैतन्यविशिष्टकायलक्षणे पुसि स्वसंवेदन संभवति, येन ततोर्थान्तरमात्मानं न प्रसाधयेत् ।
चार्वाकका मन्तव्य है कि गुह पानी, पिठी, महुआके प्रयोग द्वारा मिश्रण विशेष होनेपर जैसे उन्मत्तता पैदा करनेवाली मदिरा नवीन बन जाती है, उसी प्रकार पृथिवी, अम्, तेज, वायु, के उचित रूपमें मिलनेपर विवर्त होते होते चेतन स्वरूप आत्मा उत्पन्न हो जाता है । जैतन्य शक्तिसे युक्त मूर्तिवाला शरीर ही सम्पूर्ण संसारमें आत्मा प्रसिद्ध है। उस जीवित शरीरसे मिन्न कोई भी आत्मा नहीं हैं । शरीरसे निराले अमूर्त आत्माको जाननेवाला कोई भी प्रमाण नहीं है । इस प्रकार जैनोंके द्वारा माना हुआ आत्म: कोई है ही नहीं, तो किसकी सर्वज्ञता और वीतरागता गुणों के उत्पन्न होनेपर मोक्ष मानते हो, और कौन मोक्षमार्गका प्रणेता है तथा कौन मुनीन्द्रों के द्वारा स्तवनीय है : अथवा किसके मोक्षमार्गको जाननेकी इच्छा बन सकती है ! अर्थात् आत्माकी असिद्धि होनेपर उक्त सर्वज्ञता आदि धर्म किसीके सिद्ध हो नहीं सकते हैं । जब धर्मी ही नहीं है तो उसके धर्म कहां और मोझ तथा मोक्षमार्गके जाननेकी बह इच्छा ही सिद्ध नहीं हुयी तो उमास्वामी महाराजका “ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । इस तत्त्वार्थ शास्त्रके पहिले सूत्रका प्रवर्तन करना भी योग्य नहीं है। इस प्रकार जो भी कोई आक्षेप करता है, यह बृहस्पति मतानुयायी चार्वाक मी तत्त्वोंकी परीक्षा करनेवाला नहीं है। क्योंकि शरीरसे अतिरिक्त आत्मा स्वसंवेदन-प्रत्यक्षसे सिद्ध होरहा है।