Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वार्थचिन्तामणिः
किसी वातविकारसे शरीरमै आम, स्वरबूजा सरीखा उठा हुआ गूमडा बन जाता है । उसको गुल्म कहते हैं । मैं गुल्मवाला हूं, पतला हूं यह ज्ञान (पक्ष ) इन्द्रियों की अपेक्षा रखता है ( साध्य) क्योंकि हाथोंसे टटोलनेपर शरीरके भीतर रहनेवाली स्पर्शन इन्द्रियको कारण मानकर उत्पन्न हुआ है । यो दृष्टान्त हेतुको रस्वदिया है । तब तो व्याप्तिवाले साध्यको पक्षमै साघ देगा।
चार्वाक कहता है कि उस ही कारणसे " मैं सुखी हूं" यह ज्ञान भी उसी प्रकार इन्द्रियोंको निमित्त मानकर उत्पन्न होनेसे ही इन्द्रियोंकी अपेक्षा रखनेवाला मानलिया जावे, अन्धकार कहते हैं कि यह चावाकका कहना तो उचित नहीं है । क्योंकि मैं सुखी हूं ऐसा वह वेदन तो केवल अहं करानेवाली प्रतीतिको आश्रय मानकर उत्पन्न हुआ है । इसमें चक्षुरादिक इन्द्रियां और बहिरंग विषय कारण नहीं पडे हैं।
पुनः भी चार्वाक यो कहें कि " मैं सुखी हूं " वह ज्ञान तो भ्रांतिरूप ही है । यह भी उसका कथन ही ठीक नहीं हैं। कारण कि मैं सुखी हूं इस ज्ञानमें कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है। बाधारहित ज्ञान प्रमाण ही होता है । भ्रम नहीं ।
नन्वहं सुखीति वेदनं करणापेक्षं वेदनत्वादहं गुल्मीत्यादिवेदनवदित्यनुमानपावस्य सद्भावात्सबाघमेवेति चेत्, किमिदमनुमान करणमात्रापेक्षवस्य साधक बहिःकरणापेक्षस्वस्य साधकं वा ? प्रथमपक्षे न तत्साधकं स्वसंवेदनस्यान्तकरणापेक्षस्येष्टत्वात् । द्वितीयपक्षे प्रतीतिविरोधः खतस्तस्य पहिःकरणापेक्षत्वाप्रतीतः ।
यहां बाधवर्जितपनको बिगाडनेकी इच्छासे अनुमान बनाकर चार्वाक बाघा उपस्थित करते है कि " मैं मुखी ई ". यह ज्ञान ( पक्ष ) इंद्रियों की अपेक्षासे उत्पन्न हुआ है (साध्य ) क्योंकि वह ज्ञान है, जैसे कि मैं गुल्मवाला ई, मैं काला हूं इत्यादि ज्ञान इंद्रियोंकी अपेक्षा रखते हैं। ( अन्वय दृष्टान्त ) इस अनुमानसे आप जैनोंके पूर्वोक्त अनुमानमें बाधा विद्यमान है। इस कारण अर्हतोका हेतु बाधित हेत्वाभास है। वह मैं सुखी हूं इस ज्ञानको अभ्रान्त सिद्ध नहीं कर सकता है। आचार्य कहते हैं कि यदि चार्वाक यह कहेंगे तो हम पूछते हैं कि आपका दिया हुआ यह अनुमान क्या इंद्रियमात्रकी अपेक्षा रखनेपनको सिद्ध करता है अथवा सर्शन अलिक बहिरंग इंद्रियोकी अपेक्षाको सिद्ध करता है ! बताओ।
यदि पहिला पक्ष लोगे तब तो यह अनुमान हमारे अनुमानके बाधक होनेका उद्देश्य रखकर अपने साध्यको सिद्ध नहीं कर सकता है। क्योंकि मनरूप अन्तरंग इन्द्रियकी अपेक्षा रखनेवाला स्वसदन प्रत्यक्ष है, यह हमने इष्ट किया है । सिद्धसाधन दोष तुमपर लगा। तथा यदि दूसरा पक्ष कोगे कि मैं सुखी है यह ज्ञान बहिर्भूतइन्द्रियों की अपेक्षा रखता है तो प्रतीतियों से विरोध होगा।