Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थ चिन्तामणिः
૨૨
न हो सकेगा । देखो ! शरीरके असाधारण गुण जो प्राण आदिकके संयोग माने हैं क्या वे स्पर्शन इंद्रिय विषय नहीं है ? किंतु अवश्य हैं।
यदि आप प्राणको स्पर्शन इन्द्रियका और वचनको कर्ण इन्द्रियका विषय न मानोगे तो बाल गोपाल सबसे जानी गयी प्रतीतिस विरोध होगा । अर्थात् सब कोई शरीर के गुणोंको स्पर्शन आदिक इंद्रियोंसे जान रहे हैं। नाडी चलना, फेफड़ाकी गति ये क्रियायें मी चक्षु, और स्पर्शनसे जानी जाती हैं ।
कश्विदाह नाये जीवच्छरीरस्यैव गुणस्ततः प्रागपि पृथिव्यादिषु भावादन्यथात्यन्तासस्तोपादानायोगाद्गनाम्भोजवत्, साधारणस्तु स्यात्तदोपाभावादिति तदसत् ।
यहाँ कोई कहता है कि यह चैतन्य जीवितशरीरका ही असाधारण गुण नहीं है क्योंकि शरीर बनाने के पूर्व भी बट, पट आदिकोंको बनानेवाले पृथ्वी, जल, तेज और बायु तत्वों में चैतन्य विद्यमान था अन्यथा यानी यदि ऐसा न माना जावे तो आकाश कमलके समान अत्यंत रूप से असत् हो रहे चैतन्यका उन पृथ्वी आदिक तत्वोंमें उपादानकारणपना न हो सकेगा उशदान कार णोंमें कार्य शक्तिरूपसे विद्यमान रहते हैं। हां। जीवितशरीरका चैतन्य अन्यस्थानों में भी पाया जाने ऐसा साधारण गुण होय तो इसमें कोई दोष नहीं है। बाह्य इंद्रियोंसे ज्ञात हो जानेका वह प्रसङ्ग तो परमाणुगुणोंके ज्ञाव न होनेसे निवारित हो जाता है अतः साधारण गुण माननेपर वह दोष नहीं आता है। आचार्य कहते है कि इस प्रकार चार्वाक एकदेशीयका यह कहना भी असत्य है, प्रशंसनीय नहीं है। कारण कि -
साधारणगुणत्वे तु तस्य प्रत्येकमुद्भवः ।
पृथिव्यादिषु किन्न स्यात्स्पर्श सामान्यवत्सदा ॥ १४२ ॥
द्वितीय पक्षके अनुसार यदि चैतन्यको शरीरका साधारण गुण मानोगे तब तो साधारण माने गये स्पर्शके समान अकेले अकेले पृथ्वी, जल, आदिमें क्यों नहीं सर्वदा चैतन्यकी उत्पत्ति होती रहेगी ! बताओ अर्थात् स्पर्शके समान घट, पट आदिकों में भी चैतन्य पैदा हो जायेगा । नैयायिक और चार्वाक मतानुसार स्पर्श गुण तो चारों भूतों का सामान्य हैं शेष गुण ऐसे नहीं हैं । जलमें गंध नहीं, तेजमें रस, गंध नहीं, बायुमै रूप, रस, गंध तीनों भी नहीं माने हैं।
tataceterarरेण परिणतेषु पृथिव्यादिषु बोधस्योद्भवस्तथा तेनापरिणतेष्वपि स्यादेवेति सर्वदानुषो न भवेत् स्पर्शसामान्यस्येव साधारणगुणत्बोपगमात् ।
जीवित शरीर के आकार करके परिणामको प्राप्त हुए पृथ्वी आदिकर्ते जैसे ज्ञानकी उत्पत्ति 'मानते हो, वैसे ही जीवित शरीरस्वरूप से नहीं परिणमे हुए घट, पट आदि पृथिवीमें भी चैतन्य
32