Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वार्थचिन्तामणिः
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यदि भिन्नजातिवाला दूसरा पक्ष लोगे तब तो अमिका जलके समान विजातीय भूत उस चैतन्यका उपादान कारण कैसे बन सकता है ? अर्थात् जैसे अमिका उपादानकारण जल नहीं है वैसे ही विजातीयमूत भी आत्माका उपादान न हो सकेगा । यदि सर्वप्रकारसे विजातीय पदार्थको भी उपादान कारण मानोगे तो फिर भी चावकोंने वही अदृष्ट पदार्थोंकी कल्पना की जो कि प्रतीतिभसे विरुद्ध है ।
गोमयादेविकस्योत्पत्तिदर्शनामा इष्टकल्पनेति चेत् न वृश्चिकशरीरगोमययोः पुगलद्रव्यत्वेन सजातीयत्वात् तयोरुपादानोपादेयतापायाच्च । वृश्चिकशरीरारम्भका हि पुलास्तदुपादानं न पुनर्गोमयादिस्तस्य सहकारित्वात्
यदि चार्वाक यों कहें कि गोबर, दही, आदिसे बिच्छू पैदा होते हुए देखे गये हैं । अतः खडसे चैतन्यकी उत्पत्ति माननेमें हमारी अदृष्टकल्पना नहीं है। आचार्य कह रहे हैं कि इस प्रकार तो मति नहीं ) कहो — क्योंकि विच्छूका शरीर और गोवर दोनों ही पुद्द्रकद्रव्य होने की अपे{ क्षासे समान ज्याशिवाले हैं। अतः उन शरीर और गोवरका उपादान उपादेयभाव है । बिच्छूकी आत्मा और गोबरका उपादान उपादेयमात्र सर्वथा नहीं है ।
दूसरी बात यह है कि जैन सिद्धांतकी सूक्ष्म गवेषणा करनेपर गोमयको शरीरका उपादान कारणपना भी सिद्ध नहीं हैं किंतु गोबर में अदृश्यरूपसे विद्यमान होरही सूक्ष्म आहारवर्गणाएं ही बिच्छूके शरीरको बनानेवाली उपादानकारण हैं, जिनको कि गोवरमें आया हुआ विच्छ्रका जीव अपने योगसे प्रसिक्षण कुछ देस्तक ग्रहण करता है मोटा दृश्यमान गोबर आदि तो सहकारी कारण हैं। अतः आपका दृष्टांत विषम है। वास्तवमे पौलिक शरीरकी गोवर, दही, वर्गणा आदि उत्पत्ति है, चैतन्यकी नहीं हो। शरीर, इंद्रियां, मस्तक और छाती के छोटे छोटे अवयव या नाभी, बादाम, आदि पुद्गल उस चेतन आत्मासे उपादेय होरहे ज्ञानके निमित्त कारण बन जाते हैं ।
सवेन त्वादिना वा सूक्ष्मभूतविशेषस्य सजातीयत्वाच्चेतनोपादानत्वमिति, तत एव क्ष्मादीनामन्योऽन्यमुपादानत्वमस्तु निवारकाभावात् ।
चाक कहते हैं कि जड़भूत भी सद्रूप है और चैतन्य भी सद्रूप विद्यमान है । इसी प्रकार अचेतनमूल भी द्रव्य है और आत्मा भी द्रव्य है तथा भूत और चैतन्य दोनों अभिषेय, ज्ञेय, वस्तु, पदार्थ है । यों सत्त्व और द्रव्यपने आदि चेतनका सजातीय होनेसे विशिष्ट परिणामो में मिला हुआ सूक्ष्म भूत हमारे यही चेतनका उपादान कारण हो जावेगा ग्रंथकार कहते हैं कि ऐसा मानोगे तो तिस ही कारण पृथ्वी आदिकोंका भी परस्पर में उपादान उपादेय भाव हो जाये। क्योंकि कोई रोकनेवाला नहीं है । सत् और द्रव्यपनेसे पृथ्वी आदि भी समान जातिशले हैं फिर पृथ्वी ज आदि चार तत्त्र थकू क्यों माने जाते हैं ? एक ही तत्व (पुद्गल ) मानलो |