Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणि
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जाद्वचनादिस्तु न सुषुप्तविवक्षापूर्वको दृष्ट इति तद्गमक एव सन्निवेशादिबज्जगत्कृतकत्वसाधने यादृशामभिनवकूपादीनां सन्निवेशादिधीमत्कारणकं दृष्टं तादृशामदृष्टधीमत्कारणानामपि जीर्णरूपादीनां तद्गमकं नान्यादृशां भूवरादीनामिति ब्रुवाणो ta जाग्रदादीनां विवचापूर्वकं वचनादि दृष्टं तादृशामेव देशान्तरादिवर्तिनां तचगमकं नाम्यायां सुषुप्तादीनामिति कथं न प्रतिपद्यते १ ।
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यदि दूसरा पक्ष लोगे कि " जागृत अवस्थाके वचन और चेष्टा से सोते हुए के वचन भी इच्छापूर्व सिद्ध कर लिये जावेंगे "। यह आप बौद्धोंका हेतु भी उस साध्यका गमक कैसे भी नहीं है क्योंकि क्या जागते हुए वचनादि गाढ सोते हुए पुरुषकी विवक्षापूर्वक देखे गये हैं! अर्थात् नहीं, अतः व्याप्ति नहीं बनी और आपका जागती हुयी अवस्थाका वचनरूप हेतु तो सोती हुयी दशाकी इच्छा सिद्ध करनेमें व्यधिकरण है । जैसे कि कोई कहे कि हवेली घौली ( सफेद ) है 1 क्योंकि कौवा काला है । यह अप्रशस्त है ।
यदि इसी प्रकार ऊटपटांग अनुमान बनाये जायेंगे तब तो सोते हुए पुरुषके इच्छा सिद्ध करने के समान नैयायिकों की ओरसे ईश्वरको जगत्का कर्तापन सिद्ध करने में दिये गये विशिष्ट सनिबेश, कार्यत्व और अचेतनोपादानत्व हेतु भी समीचीन होजायेंगे देखिये ।
नैयायिक कहते हैं कि जैसे नवीन कुएं, कोठी, किले आदिको देखकर पुराने महल, कुएं आदिका भी बुद्धिमान् कारीगरोंके द्वारा बनाया जाना सिद्ध कर लेते हो, उसी प्रकार पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा, पहाड, बन, आदि सबका बनानेवाला भी ईश्वर है क्योंकि पृथ्वी आदि कार्य हैं तथा इनके उपादान कारण अचेतन परमाणु हैं । वे परमाणु किसी चेतन प्रयोक्ता के विना समुचित कार्य नहीं बना सकते हैं और सूर्य, शरीर आदि में चेतनके द्वारा की गयी विलक्षण रचना देखी जाती है । इस प्रकार नैयायिक माने गये उक्त तीन हेतुओंको आप बौद्ध गमक नहीं मानते हैं । प्रत्युत ( उल्टा ) जगत्के कर्तापनका आप इस प्रकार खण्डन करते हैं कि जिस प्रकारके नवीन कूप, गृह आदिका कार्यपना या रचनाविशेष इस असर्वश, शरीरी बुद्धिमानके द्वारा किया गया देखा है । उसी प्रकारके और नहीं दीख रहे है बुद्धिमान् कर्ता जिनके ऐसे पुराने कुएं, खण्डहर आदिकोंका भी रचनाविशेष हेतु शट उस बनानेवाले चेतन कर्ताकी सिद्धि करा सकता है किन्तु जीर्ण कुएं आदि से सर्वथा अन्य प्रकार के विसदृश शरीर, पर्वत, आदिके चेतन कर्ता को कैसे भी सिद्ध नहीं करा सकता है ?
उक्त प्रकार नैयाfasth खण्डनमें बोलता हुआ बौद्ध इस बातको क्यों नहीं समझता है कि जिस प्रकार जागते हुए, शास्त्र बांचते हुए या स्तोत्र पाठ करते हुए मनुष्योंके वचन आदि कार्य
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