Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तस्वाचिन्तामणिः
सपा प्रत्यक्ष, अनुमान, आदि प्रमाणोंसे घट, पट, देवदस, जिनदत, सह्य, विन्ध्य आदि भेद प्रसिद्ध हो रहे हैं, अतः आपका बह चित्राद्वैत और संवेदनाद्वैत आदिका प्रतिपादन प्रमाणोंसे विरुद्ध है । इस प्रकार सुगतमतसे मिन्न ही कोई दूसरा शान्तिविधानका उपाय सिद्ध हुआ । अर्थात अर्हन्तदेव ही सांसारिक दुःखोंकी शान्तिका मार्ग उपदिष्ट करते हैं । इस कारण अब तक सिद्ध हुआ कि बुद्ध उस मोक्षमार्गका प्रणयन करनेवाला नहीं है । जैसे कि ब्रह्माद्वैतवादियोंका सत्तारूप परब्रह्म मोक्षमार्गका उपदेष्टा नहीं है।
न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च मोचकः । न बन्धोऽस्ति न वै मुक्तिरित्येषा परमार्थता ॥ ९९ ॥ न ब्रह्मनादिम सिद्धा निशाना तदररवयम् । नित्यसर्वगसैकामाप्रसिद्धेः परतोऽपि वा ॥ १० ॥
प्रमाद्वैतवादी भी तो यही कहते हैं कि न किसीका नाश है और न किसीकी उत्पत्ति है, न कोई जीव बन्धा हुआ है और न कोई दूसरा जीव मोक्ष प्राप्त कर रहा है। न पन्ध है और न मोक्ष । उक्त प्रकार भेदोंका निषेध करना ही वास्तविक पदार्थ है। इस प्रकार ब्रह्माद्वैतवादियोंके मतमें विज्ञानाद्वैतवादियोंके समान परमार्थपना नहीं बन सकता है क्योंकि वह नित्य, सर्वव्यापक, एक, सत्तारूप, परब्रह्म अपने आप तो स्वत: प्रसिद्ध नहीं है और न अद्वैतवादियोंके मतमे दूसरे अनुमान, हेतु आदि परपदार्थसे आत्माऽद्वैतकी प्रसिद्धि हो सकती है । क्योंकि वे आत्मासे अतिरिक्त दूसरा पदार्थ स्वीकार नहीं करते हैं ।
___ न हि नित्यादिरूपस्य ब्रह्मणः स्वतः सिद्धिः क्षणिकानंशसंवेदनवत्, नापि परसस्तस्यानिष्टेः अन्यथा द्वैतप्रसक्तेः।
न तो निस्य व्यापक एक ब्रह्मकी अपने आपही ज्ञाति हो सकती है, जैसे कि बौद्धोंके क्षणिक और अंशोंसे रहित ज्ञानाद्वैतकी अपने आप सिद्धि नहीं होपाती है । और दूसरोंसे भी ब्रह्म की ज्ञप्ति नहीं होती है। कारण कि ब्रह्मातिवादियोंके मतमें वह परपदार्थ इष्ट नहीं किया गया है, अन्यथा यानी अन्य प्रकारसे यदि दूसरे पदार्थको साधक मानोगे तो द्वैतवादका प्रसंग आजावेगा।
कल्पितादनुमानादेः तत्साधने न तात्विकी सिद्धिर्यतो निरोधोपनिषद्धमोचकरधमुक्तिरहितं प्रतिभासमात्रमास्थाय मार्गदेशना द्रोत्सारितेवेत्यनुमन्यते ।
यदि अद्वैतवादी थोड़ी देरके लिए अनुमान, हेतु और वेदवाक्यों आदिकी भिन्न स्वरूप कल्पना करके उस कल्पित अनुमान आदिसे उस प्रलाद्वैतकी सिद्धि करेंगे ऐसी दशामें तो नमकी