Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तालाई मिसाल
शब्द निकल जाता है । रक्षित वाणीका बिना इच्छाके असमयमें च्युत होजाना इसको गोत्रस्खलन कहते हैं । देवदत्त शब्दके कहने की इच्छा होनेपर मुखसे जिनदत्त शब्द निकल गया । यहाँ पहिले कभी हुयी जिनदत्तके कहनेकी इच्छा इसका कारण मानी जाती है क्योंकि इस समय तो देवदत्त पोलनेकी इच्छा है जिनदत्त कहनेकी इच्छा नहीं है किन्तु जिनदत्त शब्द मुस्वसे निकल गया है। विना इच्छाके हमारे वचन हो नहीं सकते हैं । अतः दस दिन पूर्वकी इच्छा भी कारण हो सकती है । नष्ट हुए पदार्थ या भविष्यके गर्भमें पड़े हुए असत्यपदार्थोंको भी हम कारण मान लेते हैं। यहां तक सौगत कह चुके हैं अब आचार्य कहते हैं कि
तदयुक्तम् । गोत्रस्खलनस्य तत्कालविवक्षापूर्वकत्वातीतेः, तद्धि पद्मावतीतिवचनकाले वासवदत्तेतिवचनम् । न च वासवदचाविवक्षा तवचनहेतुरन्यदा च तदूचनमिति युक्तम् । प्रथमं पद्मावतीविवक्षा हि वत्सराजस्य जाता तदनन्तरमावात्यन्ताभ्यासववादासवदताविवक्षा तद्वचनं चेति सर्वजनप्रसिद्धम् । कथमन्यथान्यमनस्केन मया प्रस्तुतातिक्रमेणान्यदुक्तमिति संप्रत्ययः स्यात् । तथा च कथमतीतविवक्षापूर्वकल्वे सुगतवचनस्य गोत्रस्वलनमुदाहरणं येन विवक्षामन्तरेणैव सुगववाचोनप्रवर्तेरन् सुषुप्तवचोवत् प्रकारान्तरासमावात्।
उक्त प्रकार बौद्धोंका कहना युक्तियोंसे रहिस है कारण कि गोत्रस्खलनमें होनेवाली वचनप्रवृत्तिका उसी कालमै अव्यवहित पूर्व होनेवाली विवक्षाको कारणपना प्रतीत हो रहा है। उस गोत्रस्खलनका कथासरित्सागरमें उपाख्यान प्रसिद्ध ही हैं, चन्द्रवंशी वत्सराज नामक राजाके पद्मावती बोलते समय वासवदत्ता यह शब्द निकल गया था । बौद्धोंके कथनानुसार पूर्वकालकी वासवदता कहने की इच्छा वासवदत्ता शब्द बोलनेमे कारण होवे और वचनप्रवृत्ति पीछे होवे । इस तरह भिन्नकालीन पदार्थाका कार्यकारणभाव मानना युक्त नहीं है । यह बात सम्पूर्ण मनुष्योम प्रसिद्ध है कि वत्सराजके पद्मावती कहनेकी पहिले इच्छा हुयी उसके बाद शीघ्र ही अत्यन्त अभ्यासके बस कासवदत्ता कहनेकी इच्छा उत्पन्न हो गयी । उस समयकी इच्छासे ही वह वासवदत्ता शब्द कहा गया है। यदि ऐसा न मानकर अन्य प्रकारसे माना जावे सो लोगोंको यह अच्छा निर्णय कैसे हो जाता कि मेरा चित्त दूसरी तरफ रूम गया था इस कारण मैंने प्रस्तावप्राप्त प्रकृत विषयका अतिक्रमण करके दूसरी ही बात कह दी है । इससे सिद्ध होता है कि जो शब्द निकलते हैं। उनकी इच्छा शीन ही अव्यवहित पूर्वकालमें उत्पन्न हो चुकी है। तभी तो अनुल्यवसाय हुभा । ऐसा सिद्ध होनेपर सुगतकी वचनम्वृत्तिका भूतकालीन इच्छाको कारण माननेमें गोत्रस्खलनका उदाहरण केसे घटित हुआ ! यानी यह दृष्टांत ठीक नहीं है। जिससे कि विवक्षाके विना मी सुगतके वचन मवर्तित न हो सकेंगे अर्थात् सोते हुए पुरुषके वचन विना इच्छाके जैसे पैदा हो जाते हैं उसी प्रकार विना इच्छाके सुगतके वचन मी प्रवृत्त हो जाते हैं । यह मान लेना चाहिये । दूसरा कोई उपाय सम्ममता नहीं है। . .