Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
खड्गिनोप्युपकार्यस्य स्वसन्तानस्य किं पुनः । न स्यादनन्तता येन तन्निरन्वयनिर्वृतिः ॥ ८ ॥ स्वचित्तशमनात्तस्य सन्तानो नोत्तरत्र चेत् । नात्मानं शमयिष्यामीत्यभ्यासस्य विधानतः ॥ ८१॥ न चान्स्यचित्तनिष्पत्तौ तत्समातिर्विभाव्यते । तत्रापि शमायेष्याभीत्येष्यांच्चत्तव्यपक्षणात् ॥ ८२ ॥
क्षणिक विज्ञानरूप सुगतको सन्तानके सर्वदा स्थित रहनेमें यदि यह हेतु माना जाये कि बुद्धके द्वारा उपकृत होनेवाला जगत् अनन्त कालतक धारामाहसे स्थिर रहेगा। इस कारण बुद्ध भी सन्तानरूपसे अनन्त झालतक सदा संसारमें बने रहेंगे तो हम जैन भी कटाक्ष करते है कि खड्गिकी अपनी ज्ञानसन्तान भी स्वगिके द्वारा शान्तिलामसे उपकृत होती हुई अनन्तकाल तक रहेगी, फिर क्यों नहीं खगिकी संसारमें स्थिति मानी जाती है। जिससे कि उस खगिकी निरम्क्य मोक्ष होगयी मानी जाय। आपने दीपके के जुझने के समान सर्वथा अन्वयरहित होकर खगिकी मोक्ष मानी है, सो नहीं बन सकती है।
यदि आप बौद्ध यों कहें कि उस खटिङ्गक अपने ज्ञानरूप आत्माका सर्वदाके लिये शमन हो जाता है, सर्वथा अन्नय टूट जाता है, इस कारण उत्तरकाल भविष्यमै खगिके चित्तकी सन्तान नहीं चलती है। यह आपका कहना तो ठीक नहीं है, क्योंकि खड्गिके चित्तका शमन नहीं हुआ है। आत्माको मैं सदा शान्तिमार्गपर ले जाऊंगा । इस प्रकार भावनाका अभ्यास खड्गि बराबर कर रहा है।
___ यदि आप यह कहे कि भावना करते करते अन्तिमचित्तके उत्पन्न हो जानेपर खड़गिक उस ज्ञानसन्तानकी समाप्ति होना विचारपूर्वक मानी जाती है, सो यह मानना ठीक नहीं है क्योंकि जिसको आप अन्तमे होनेवाला चित्त कहते हो उस समय भी " आत्माको शमन करूंगा, ऐसी भावना करना खगिक अभ्यासमै आरहा है, अत: उसकी अपेक्षासे आगे भी चित्तकी सन्तान चलेगी। इस प्रकार दीपकलिकाके समान निरन्श्य होकर ज्ञानसन्तानका नाश हो जानारूप मोक्ष खड्गिके नहीं पन सकती है। मुगतके समान स्वगिकी भी ज्ञानधारा अनन्त काल तक चलती रहेगी अतः वह भी संसारमै ठहर सकता है।
चित्तान्तरसमारम्भि नान्त्यं चित्तमनास्त्रत्रम् । सहकारिविहीनस्वात्ताहग्दीपशिखा यथा ॥ ८३॥