Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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संस्थार्थचिन्तामणिः
१६.०
ईश्वर भी मोक्षमार्ग निरूपण करने में समर्थ नहीं है। क्योंकि ज्ञानसे सर्वथा भिन्न होजानेके कारण ईश्वर भी अचेतन ही है । घट, पट आदिके समान अचेतन पदार्थ क्या उपदेश देवेगा
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नेश्वरः श्रेयोमार्गोपदेशी स्वयमचेतनत्वादाकाशवत् । स्वयमचेतनोऽसौ ज्ञानादर्थान्तरत्वात् तद्वत्। नात्राश्रयासिद्धी हेतुरीश्वरस्य पुरुषविशेषस्य स्याद्वादिभिरभिप्रेतत्वात् । नापि धर्मिग्राहकप्रमाणबाधितः पक्षस्तद्ा हिणा प्रमाणेन तस्य श्रेयोमार्गोपदेशित्वेनाप्रतिपत्तेः ।
ईश्वर ( पक्ष ) मोक्षमार्गका उपदेश देनेवाला नहीं है ( साध्य ) क्योंकि वह अपने स्वभावसे स्वयं अचेतन है (हेतु ) जैसे कि आकाश | ( अन्यष्टान्त ) यहां कोई नैयायिक अचेतनपन हेतुको असिद्ध ( स्वरूपासिद्ध हेत्वाभासं ) करता है । उसको दूर करनेके लिये आचार्य दूसरा अनु मान करते हैं कि आपका माना हुआ वह ईश्वर अचेतन है ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि ज्ञानगुणसे ईश्ध-., रामरूप गुणी आपने सर्वथा भिन्न माना है ( हेतु ) उसी आकाशके समान १ ( अन्वय उदाहरण ). यानी जैसे कि आकाश ज्ञानसे भिन्न होनेके कारण अचेतन है जब कि जैनजन स्रष्टा, गोप्ता, हर्ता, ईश्वरको नहीं मानते हैं और फिर ईश्वरको पक्ष बनाते है तो उनका हेतु आश्रयासिद्ध हो जायगा इस कटाक्ष पर आचार्य महाराज कहते हैं कि उक्त अनुमानमें ईश्वररूपी पक्ष असिद्ध नहीं है, जिससे कि हमारा हेतु आश्रयासिद्ध हेत्वाभास होआवे, जबकि हम स्याद्वादी विद्वान किसी विशिष्ट पुरुषको ईश्वर स्वीकार करते हैं । हां महान् देव माने गये उस पुरुषमें मोक्षमार्गके उपदेश देनेका अभाव सिद्ध करते हैं । यदि यहां कोई नैयायिक कहें कि जिस प्रमाणसे आप ईश्वरको जानेंगे, उस प्रमाणसे मोक्षमार्गका उपदेश देनेवाला ही ईश्वर सिद्ध होगा । तथाच ईश्वररूप पक्ष जानते समय ही उसके मोक्षमार्गका उपदेशकपन भी ज्ञात हो जाता है । पुनः आपका मोक्षमार्गके उपदे-शका अभाव सिद्ध करना पक्षके ग्राहक प्रमाणसे ही बाधित हो जावेगा और तब तो आपका हेतु बाधित नामका हेत्वाभास बन बैठेगा। आचार्य कहते हैं कि यह भी नैयायिकों का कहना ठीक नहींहैं। क्योंकि श्रेयोमार्ग के उपदेश देनेवाले उस ईंश्वरका अद्यापि निर्णय नहीं हुआ है । केवल सामान्य मनुष्योंके समान अथवा कुछ लौकिक विद्याओं और चमत्कारोंसे युक्त महादेव, ऋक्षा, ईश्वर, कृष्ण, व्यास, परशुराम, कपिल, बुद्ध आत्माओंको हम स्वीकार करते हैं किंतु उस ईश्वरको व्यापक, कर्ता, हर्त्ता, भर्चा, मोक्षमार्गका उपदेष्टा, सर्वज्ञ आदि विशेषणोंसे सहित नहीं मानते हैं । अतः हमारा अचेतनत्व हेतु बाधाओंसे रहित होकर सद्धेतु है ।
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परोपगमतः साधनाभिधानाद्वा न प्रकृतचोद्यावतारः सर्वस्य तथा तद्वचनाप्रतिक्षेपात् ।
अथ दूसरी बात यह है कि अन्य नैयायिकोंके मन्तव्यके अनुसार हमने ईश्वरको पक्ष स्वीकार कर लिया है और उसमें उनसे माने हुए अचेतन हेतुसे मोक्षमार्गके उपदेशी पनका अभाव सिद्ध कर दिया है। इस कारण यह इस समय प्रकरणमै दिये गये नैयायिकोंके कुत्सित दोष नहीं।